उसकी छवि को देखते हुए

uski chhawi ko dekhte hue

जोशना बैनर्जी आडवानी

जोशना बैनर्जी आडवानी

उसकी छवि को देखते हुए

जोशना बैनर्जी आडवानी

और अधिकजोशना बैनर्जी आडवानी

    रोटी देर तक चबाती हूँ

    और देखती हूँ जैसे किसी गोप ने पृथ्वी के हर बच्चे तक

    दूध पहुँचा दिया हो

    जैसे तीजनबाई छितरा रही हों पंडवानी का जादू

    जैसे जीवनोदक टपका हो पृथ्वी के हर अस्वस्थ

    पिता के कंठ में

    जैसे किन्नरेश पहुँचे हों मेरे द्वारे

    उसकी छवि को देखते हुए लगता है

    जैसे कर्नाटक की ढालवाँ ज़मीन पर खड़ी हों

    असंख्य चंदन की खपच्चियाँ

    जैसे किसी सुकुमार को यज्ञोपवीत के लिए

    'यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं' बुलवा रहा हो कोई विशारद

    जैसे किसी लिखने वाली सहेली को राष्ट्रीय पुरस्कार

    की सूचना मिली हो फ़ोन पर

    लगता है जैसे बीहड़ में वर्षा हुई हो अभी-अभी

    उसकी छवि को देखते हुए लगता है

    जैसे ऊष्मा में प्रेमी ने फूँक मारी हो प्रेमिका के चेहरे पर

    जैसे त्रिपथगा में तीन डुबकियाँ लगा कर निकली हो देह

    जैसे प्राणप्रिया मार्गी गुनगुना रही हो घर के आँगन में

    जैसे मदांध मार रही हो प्रेयसी अपने प्रेयस को देख-देखकर

    जैसे चाय बागान में औरतें गा रही हों सुमधुर लोकगीत

    उसकी छवि को देखते हुए लगता है

    जैसे अनेक रानीकीट फिर से पाए जाने लगे हों बागानों में

    और प्रत्येक रोमकूप में खिले हों ब्रह्मकमल

    स्रोत :
    • रचनाकार : जोशना बैनर्जी आडवानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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