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पेड़ हरा हो रहा है

peD hara ho raha hai

प्रकाश मनु

प्रकाश मनु

पेड़ हरा हो रहा है

प्रकाश मनु

और अधिकप्रकाश मनु

    हौले-हौले बरस रही हैं रस-बूँदें

    हौले-हौले

    पेड़ हरा हो रहा है।

    बहुत दिनों की इक‌ट्ठी हुई थकान

    जिस्म और रूह की

    बह रही है

    बह रहा है ताप

    बह रही है ढेर सारी गर्द स्मृतियों पर पड़ी

    दुख-अवसाद की छाया मटमैली

    दाह-तपन मन की

    सब बह रही है और पेड़ हरा हो रहा है

    हरा और रस से भरा

    नया-नया सुकुमार, आह्लादित।

    अभी-अभी मैंने उसकी खट-मि‌ट्ठी बेरियों-सी

    हँसी सुनी

    अभी-अभी मैंने उसे बाँह उठाए

    कहीं कुछ गुप-चुप इशारा-सा करते देखा

    और मैं जानता हूँ पेड़ अब रुका नहीं रहेगा

    वह चलेगा और तेज़-तेज़ क़दमों से

    सारी दुनिया में टहलकर आएगा

    ताकि दुनिया कुछ और सुंदर हो

    कुछ और हरी-भरी, प्यार से लबालब और आत्मीय

    और जब लंबी यात्रा से लौटकर वह आएगा

    उसके माथे से, बालों की लटों और अंग-अंग से

    झर रही होंगी बूँदें

    सुख की भीतरी उजास और थरथराहट लिए

    रजत बूँदें गीली चमकीली

    और उन्मुक्त हरा-भरा उल्लास

    हमारे भीतर उतर जाएगा कहीं दूर जड़ों तक...

    अँधेरों और अँधेरों और अँधेरों के सात खरब तहख़ानों के पार।

    फिर-फिर होगी बरखा

    फिर-फिर होगा पेड़ हरा

    स्नेह से झुका-झुका

    तरल और छतनार...

    फिर-फिर हमारे भीतर से निकलेगा

    किसी नशीले जादू की तरह

    ठुमरी का-सा उनींदा स्वर

    कि भैरवी की-सी लय-ताल...

    कि पेड़ हरा हो रहा है

    पेड़ सच-मुच हरा हो रहा है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रकाश मनु
    • प्रकाशन : वनमाली कथा,अप्रैल-2024

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