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पेड़ अघोरी तू बरगद

peD aghori tu bargad

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

पेड़ अघोरी तू बरगद

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    पेड़ अघोरी तू बरगद का मैं इक चिरई ललमुनिया

    गीत बसे तेरी हर पाती डूब-डूब के मैं सुनिया

    हवा तुझे सहलाए जब-जब

    सिहरन मुझको होती है

    कोरे नैन भीगते तेरे

    ललमुनिया यह रोती है

    तेरी अँखियों के दरपन में देखी है मैंने दुनिया

    पेड़ अघोरी तू बरगद का मैं इक चिरई ललमुनिया

    जाने कौन ठौर का नाता 

    हम दोनों को एक किए

    बिन स्वारथ बहती इक नदिया

    दोनों तीरे तीर्थ बसे 

    सब उपमाएँ मौन खड़ी हैं मुस्कइयाँ अधराँ ठईया

    पेड़ अघोरी तू बरगद का मैं इक चिरई ललमुनिया

    मथुरा काशी से हम दोनों

    प्रेमी वैरागी हैं

    खोने-पाने से गाफ़िल

    दोनो ऐसे अनुरागी हैं

    जाने कौन काज की ख़ातिर क़िस्मत ने द्वय को चुनिया

    पेड़ अघोरी तू बरगद का मैं इक चिरई ललमुनिया

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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