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पटरियाँ तार और खंभे की ज़ुगलबंदी

patriyan taar aur khambhe ki zugalbandi

मनोज मल्हार

मनोज मल्हार

पटरियाँ तार और खंभे की ज़ुगलबंदी

मनोज मल्हार

और अधिकमनोज मल्हार

    वह कुछ अनूठा ही है।

    इंसानी बस्तियों से दूर

    बहुत बड़े आसमान के नीचे

    ऊँची रेखाओं पर दो पटरियाँ सामानांतर

    सदैव रोड़ों से ढँके, बंधनों से बँधे।

    नसीब कुछ इस तरह

    की अगर कभी मिले, या कोशिश भी की

    विद्रूप हो उठती है वो स्थली

    तीव्र गति से पलटने उलटने की अनियंत्रित, अपरिचित

    अनियोजित खरोंचों से बिंध जाती हुई...

    पटरियों के पास घास होते है छोटे-लंबे

    कोमल और कठोर का अज़ीब मिलन।

    पटरियाँ नहीं खिसकना चाहती ज़रा भी।

    वे घासों के यार होते है।

    सृष्टि के अजब नियमों की तरह

    चार पाँच तार अपनी दूरी बनाए रखते हुए

    पटरियों के ऊपर होते हैं।

    इनके बीच अज़ब-सा रिश्ता है

    दोनों धूप में सूखते है,

    सर्दी में फैलते है

    बारिश में भीगते हैं।

    उनका मौन ब्रह्माँडीय है।

    शब्द, स्वर,

    एक सर्वथा अपरिभाषित मौन

    जैसे झुर्रियों से भरे दो चेहरे

    रोज़ डूबते सूरज को देखते हुए

    निशब्द बातें करते हों...

    एक ही तरफ़ देखने पर

    खंभों की पंक्ति

    अनुशासित सैनिक की कतार लगती है

    बहुत दूर पत्तों पेड़ों के आवरण में

    प्रवेश कर जाती हुई।

    तीसरा भी है–

    पटरियों और तार को मिलाता

    आध्यात्मिक विश्वास वाला खंभा।

    इसकी जड़ें पटरियों के बेहद क़रीब होती हैं

    और शीर्ष तार के वजन को संभालता...

    एक तरफ़ से देखकर कह सकते हैं–

    यह तार और पटरियों को मिला रहा है

    तो दूसरी ओर से देखकर–

    ये पटरियों और तार को मिलने नहीं दे रहा।

    अजब स्थिति है बेचारे की

    ये उसका अपना चयन नहीं है।

    अस्तित्व पाने के बाद उसने ख़ुद को इसी रूप में पाया है...

    मेरी यह छोटी-सी कामना है...

    अपनी दूरियों, नज़दीकियों और स्थितियों के साथ

    इस विराट आसमान के नीचे

    पटरियों, तार और खंभे की ज़ुगलबंदी क़ायम रहे

    घास उगते रहें कठोरता की ज़मीन पर भी

    धूप बारिश हवा इन्हें जीवन देती रहे...

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज मल्हार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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