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पटिदारी

patidaaree

केतन यादव

केतन यादव

पटिदारी

केतन यादव

और अधिककेतन यादव

    जब किसी एक के यहाँ पुरनिया मर जाते थे

    तो पूरी पट्टी में छूत लग जाता था

    नई ब्याही बेटी जिसका गौना बाकी हो उसका चूल्हा

    अलग हो जाता था नात-बात में कहीं दूर

    पटिदारी के ब्याह में कुर्सी खटिया सब सध जाता

    कितनो दुश्मनी हो न्योता का हरदी-दूब लेकर आशीषते थे सब

    और दुख में पछाड़ खाई स्त्री को पटिदारी की औरतें

    रो-रोकर संभाल लिया करती थीं

    ये अलग बात है कि उत्सव के आख़िरी तक कोई-न-कोई

    पटिदारी का अड़ंगा लगा ही देता है और तभी

    जीजा और फूफा उनकी तरफ़दारी में एक बात बोल ही देते थे

    बुढ़िया अइया कपार पीटकर समझाती थीं कि

    छनन-मनन होता ही रहता है पटिदारी में हमेशा

    इसका मतलब क्या हम अपने खेत का मेड़ दूर थोड़ी ले जाएँगे?

    और बदल लेंगे पड़ोस और पड़ोसी?

    अटल बिहारी वाजपेई भी तो कहते ही थे–

    “हम दोस्त तो बदल सकते हैं लेकिन पड़ोसी नहीं।”

    जो कभी पटिदारी में झगड़ा बट्टा हो तो कोसे जाते हैं

    पुरनिया आज भी कि सूत से नापकर

    बँटवारा किए होते तो आज ये दिन देखना पड़ता

    और हम आज कितने आराम से कह देते हैं

    कि गाँधी जी ने जान-बूझकर अलग किया था पाकिस्तान

    और इतनी नफ़रत बढ़ गई है पड़ोस से आज

    कि साला आज भी गाँव देहात में जब कोई पैख़ाने जाता है

    तो कहता है पाकिस्तान जा रहे।

    पटिदारी टूट कर पटिदारी ही बनती है

    बहुत संतुलन से साधना पड़ता है पड़ोस

    कोई बात हो तो सबसे बड़ी चिंता यही होती है कि

    आग की तरह पड़ोस में फैल जाए बात

    कई बार तो ख़बर घर से पहले पड़ोस में पहुँच जाती है, जैसे

    फलानी की पतोह फलाने के साथ बतिया रही थी

    भागने के पहले फलनिया बहु चार ठो बैग छत से गाड़ी पर फेकी थी

    फलाने का लड़कवा दीवार कूद के फलाने घर गया था

    फलाने बढ़ऊ को उनकी पतोह दाना-पानी नहीं पूछती ठीक से।

    मड़ढकनी के बाद से ही जेठ से बराव रखती हैं जो स्त्रियाँ

    बवाल होने पर तान लेती हैं चप्पल

    चमका-चमका के सात पुस्त तारती ही हैं कि भरतार बगल से कहता है कि

    अरे हमारे भी बाप दादा उहे हैं तब याद आता है

    कि गाली तो उल्टा अपनही को लगती है जाकर

    गुल-गुला-सा दिल कठकरेज करके

    पड़ोसिनों को बख़्श देती हैं पड़ोसिनें

    लेकिन अगर तना-तनी के बाद भी पटिदारी का कोई छुटका

    खेलते-खेलते दुआरी पर जाता है तो बड़े लाड़ से

    चाय-रोटी पूछ लेती हैं खाने को।

    अब पड़ोस के घर की ख़बर

    फेसबुक या इंस्टाग्राम से मिलती है ऑनलाइन

    झगड़ा होने पर अधिक से अधिक अनफ्रेंड या ब्लॉक होता है पड़ोसी

    कहा-सुनी की जगह पोस्ट लाइक करना बंदकर देते हैं बस

    जोमैटो के आने पर पता चलता है कि फलाने के घर

    आज शायद खाना नहीं बना था

    रिश्तेदारों के बीच अनचीन्हे लगते हैं पड़ोसी

    जितनी सिमटती जा रही है दुनिया उतनी ही बढ़ रही है दूरी

    इस ग्लोबल विलेज में बगल में पटिदारी

    पड़ोस में रहकर भी बहुत दूर मालूम पड़ती है आज।

    स्रोत :
    • रचनाकार : केतन यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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