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पतंग

patang

उद्भ्रांत

और अधिकउद्भ्रांत

    आधे से अधिक जीवन

    कानपुर में बिताते हुए

    पतंगबाज़ी

    ख़ूब मैंने देखी थी

    नवाबों के शहर

    लखनऊ में भी

    बचपन में

    स्वयं भी

    दादी से पैसे ले

    बाज़ार से पतंगें

    रंग-बिरंगी ख़रीदता

    चरख़ी, डोरी, मंझा ले

    घर की छत पर पहुँचकर

    लेता आनंद

    पतंगबाज़ी का!

    ऊँची उड़ती पतंग तो

    मन भी ऊँचा उड़ता

    पेंच लड़ाने में

    नहीं माहिर था,

    ज़्यादातर मेरी ही पतंग

    काट दी जाती

    और मैं

    रुआँसा हो जाता

    कभी-कभी

    ऐसा भी सुखद पल आता

    जब धोखे से या

    विपक्षी की ग़लती से या

    मंझे के पैनेपन से

    पतंग दूसरे की कट जाती

    तो दिल मेरा ख़ुशी से भर

    उछल जाता बल्लियों

    पतंग लूटने का नहीं

    मुझे शौक़ था लेकिन

    कभी-कभी दूसरी पतंगें

    कटकर जाती थीं

    छत पर

    और मैं आनंदित हो

    उन्हें भी उड़ाता था!

    इन दिनों

    मैं देखता हूँ

    भारत और पाकिस्तान

    अपनी-अपनी पतंगें उड़ाते हैं

    दोनों की ही

    कोशिश होती यह—

    दूसरे की

    राजनीति की पतंग

    कट जाए

    मिल जाए उन्हें

    आसमान काश्मीर का

    समूचा ही!

    गोकि

    इस समय

    सबसे ऊँची उड़ती पतंग

    अमेरिका की

    और ये दोनों भाई

    इस प्रयास में रहते—

    अमेरिका

    अपनी पतंग से उनकी

    काट दे पतंग

    ताकि परोक्ष में ही सही

    उनकी तरफ़ झुके

    शक्ति का समीकरण

    और दूसरा भाई

    उससे ईर्ष्या करे!

    प्रकट है

    जिस भाई की कटेगी पतंग

    वही अपने आपको

    समझने लगेगा बड़े गर्व से भर

    अमेरिकी सल्तनत का

    वज़ीर-ए-आज़म!

    इस तरह

    पतंगबाज़ी को

    मिलेगी प्रतिष्ठा

    अंतरराष्ट्रीय स्तर की!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अस्ति (पृष्ठ 133)
    • रचनाकार : उद्भ्रांत
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
    • संस्करण : 2011

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