पसारना अच्छा नहीं लगता हाथ किसी के सामने
pasarna achchha nahin lagta hath kisi ke samne
प्रांजल धर
Pranjal Dhar
पसारना अच्छा नहीं लगता हाथ किसी के सामने
pasarna achchha nahin lagta hath kisi ke samne
Pranjal Dhar
प्रांजल धर
और अधिकप्रांजल धर
हालाँकि अपना हक़ माँगने की बजाय
उसे छीन लेने वाले क्रांतिकामियों के साथ-साथ
सफ़ेदपोश लुटेरे भी यही मानते हैं
कि पसारना अच्छा नहीं लगता हाथ किसी के सामने
कि हाथ काम करने के लिए गढ़ा गया था
कि इसी हाथ से बचती है गरिमा
और जीवन का सार और तत्व
पसारना अच्छा नहीं लगता हाथ किसी के सामने
कि लज्जा ख़रीदने वाला तो अभी तक कोई पैदा ही नहीं हुआ
गरिमा के विक्रेता का जन्म भी अभी बाक़ी ही है
अकिंचन के भार इतने ज़्यादा हुआ करते
कि आप उठा ही नहीं पाएँगे
एक बिंदी, एक ख़ुशबू, एक फूल की क़ीमत
बाज़ार से नहीं,
कवि के हृदय से पूछी जानी चाहिए
तुम्हारी चहारदीवारियों और अहातों से
निकलने वाले बेशुमार कूड़ों में कविताएँ रहती हैं
राजनीतिकर्मियो!
हमारी करुणा का ऐसा सर्वनाश, जैसा स्पेन के साथ हुआ
मामूली गुरिल्ला सुपरमैन के खिलाफ लड़े *1
टपकती लार की बदबू आती है मुझ तक
जिसमें सिर्फ़ गुणा-गणित, लोभ-लालच और
व्यापार का व्याकरण भरा पड़ा है
एक बात बताओ!
ऐसी लार लेकर जीते हो कैसे?
मरते हो कैसे?
ख़ैर, तुम्हारा मरना भी
भव्य मरण की शृंखला का एक स्वर्ण-बिंदु हो जाता है
प्रबंधको!
घरवालियों से पूछो गर्वीली ग़रीबी में रहते हुए भी
प्रबंधन के आलीशान गुरों को
कैसे वे जी लिया करती हैं,
चावल में से वे कंकड़ निकालती हैं
ख़ुद भूखे रहकर सबके लिए खाना पकाने से पहले;
और तुम सिर्फ़ कंकड़ ही डालते हो सबके खाने में!
दुनिया गोल है प्रबंधको!
और तुम्हें भ्रम यह
कि तुम इस अदृश्य वर्तुल में
माँओं और गृहणियों से आगे चल रहे हो,
तुम्हारा यही भ्रम तोड़ेंगी मेरी कविताएँ
और विराम-चिह्न डाल देंगी तुम्हारी रफ़्तार में कहीं-कहीं
चाहे वह अल्प-विराम ही क्यों न हो!
तुमने जो अँधेरे फैलाए हुए हैं
उनके चंद्रबिंदु और बिंदियों को निगल जाएँगी ये कविताएँ
ये रचेंगी एक बेहतर दुनिया, रहने लायक़
...और एक दिन तुम महसूस करोगे
कि लज्जा बहुत भारी पड़ती है बेशर्मी पर
कि किसी से जब कुछ माँगना ही कवि के लिए शर्म की बात हो
तो किसी को लूट लेना कितनी बड़ी बेशर्मी की परिभाषा में आएगा!
तुम यह भी महसूसोगे ज़रूर किसी एक दिन
कि करुणा का आयतन मुनाफ़े से बहुत ज़्यादा होता है
कि छोटा-सा हिमखंड तो पिघलने को सहमत ही नहीं होता!
कि स्त्रियाँ सिर्फ़ सेल्स-गर्ल बनने के लिए नहीं जन्मीं हैं
कि पुरखों के मौन को लिपिबद्ध नहीं किया जा सकता
चाहे वे तुम्हारे व्यापारी पुरखे ही क्यों न हों!
उन पुरखों ने भी इस चीज़ को जिया था
कि पसारना अच्छा नहीं लगता हाथ किसी के सामने!
- रचनाकार : प्रांजल धर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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