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परित्यक्त

parityakt

मोना गुलाटी

मोना गुलाटी

परित्यक्त

मोना गुलाटी

और अधिकमोना गुलाटी

    बाईं पसली के नीचे एक घाव हो गया है और मेरा शरीर

    एक नीले ख़रगोश की शक्ल में बदल गया है।

    कभी-कभी चीज़ों में व्यतिक्रम होने लगता है और मेरे भीतर का

    रेशा-रेशा बदल जाता है किसी गुरिल्ले की ख़ौफ़नाक आवाज़ में।

    रात के जिस्म पर खिंच जाता है स्याह पर्दा और

    गीदड़ों के चीख़ने की आवाज़ मुझे जकड़ लेती है।

    गड्डमड्ड आकृतियों में लगातार दृश्य परिवर्तित होते रहते हैं

    और मेरा जिस्म खड्डे भरे मैदानों और

    युद्धक्षेत्र के प्रेतों को लेकर

    अँधेरे में घूमने लगता है

    कभी समाप्त होने वाली जिघांसा चपटा गोला बन जाती है।

    गली के ऊपर बने मकान से फूटता है बदबू का भभका और

    हाँफती हुई शक्ल मेरे तलवों के बीच से गुज़रने लगती है।

    मैंने अपना शरीर सौंप दिया था

    लेकिन इस प्रश्न का जवाब अब

    ढूँढ़ने से नहीं मिलता कि

    किसको?

    मेरी पतली बरौनियों के बीच दमकता रंग

    अब ग़लत अर्थ देने लगा है। मेरे होंठों पर

    सूखी पपड़ी की पर्तें बनने लगी हैं, जीभ से होंठों को तर करना

    हमेशा बेहूदा लगा है और मैंने बचपन में दीवार पर नाक रगड़कर

    चमकानी हरकतें करने का फ़ैसला किया था,

    (वह पहली सज़ा थी जो मैंने ख़ुद को दी थी)। अब

    अपराधीन दुबली लड़की ज़ोर-ज़ोर से मेरे तकिए पर सिर रखकर

    सिसकती है। मेरी पहली उँगलियों से ग़ुस्सा पसीना बनकर निकल जाता है।

    और वह मुझे हमेशा लौटकर गली के नुक्कड़

    पर इंतज़ार करता मिलता है।

    गीली होने के पश्चात् यंत्रणा टूटती नहीं और शताब्दी के

    पोरों मे हरा ज़ख़्म चमकने लगता है।

    प्रत्येक घाव का अर्थ जीने के लिए

    नया मुखौटा तैयार करना है।

    प्रत्येक चीख़ का अर्थ

    अपनी हत्या के लिए नया षड्यंत्र खोजना है।

    प्रत्येक बात को सह लेने के लिए

    नए सिद्धांत ढूँढ़ने की

    क्या आवश्यकता है।

    प्रत्येक हत्याकांड को सही सिद्ध

    करने की ज़िद करने की क्या ज़रूरत थी।

    मैंने अपनी मुट्ठी में बँधे समय को

    नाचने के लिए छोड़ दिया है

    माई लाई में हुए नृशंस हत्याकांडों से

    तुम्हारे भीतर के जानवर को तृप्त होते देखकर

    मुझे नहीं लगता कि मैंने कुछ पा लिया है :

    अप्रतिम!

    यह केवल एक ख़ौफ़नाक आदत है जो व्यक्ति को घेर लेती है, मैंने इसे

    मापने का यंत्र बनाने का प्रयास छोड़ दिया है।

    देश का चेहरा जंगली पशु का आकार ले लेता है

    और राजनीति

    गिरगिट की भाँति

    रंग बदलने लगती है। मेरे

    भीतर का व्यक्ति इस वजह से कितने वर्षों तक गलियों में

    भटक सकता था

    यह एक प्रश्न है

    जिस पर ग़ौर करना नाकाम हो जाना है और मुझे लगा है

    कि तुम्हारे भीतर रेंगते तिलचिट्टे

    पकड़ने का काम

    अब किसी और पर छोड़ देना चाहिए!

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाभिनिष्क्रमण (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार : मोना गुलाटी

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