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पनकौआ

pankaua

मोहन राणा

मोहन राणा

पनकौआ

मोहन राणा

और अधिकमोहन राणा

    कुछ दिनों में आएगा एक मौसम

    इस अक्षांश में अगर वसंत हुआ

    मैं कपड़ों को बदलूँगा

    आस-पास के नक़्शे देखूँगा टहलने के लिए

    पेड़ों पर कोंपले आएँगी

    बची हुई चिड़ियाएँ लौटेंगी दूर पास से,

    आशा है एलान होगा ख़बरों में

    किसी नई लड़ाई का

    खंखारूँगा गला पूरा कहने अधूरा कि चुप हो जाऊँगा

    लंबा हो इतना इस बार मौसम कि

    जल्दी लौटें यादें पतझर की

    शब्दों के एकांत में

    छोटा होता जा रहा वसंत हर साल

    छोटा हो रहा है हर साल वसंत में,

    कभी लगता शायद दो ही मौसम हों अब से

    दो जैसे

    अच्छा-बुरा

    सुख-दुख

    प्रेम और भय

    तुम और मैं

    जिनमें बंट जाएँ पतझर और वसंत और होती रहे सूखती बारिश साल भर

    यूँ ही सोचा लिखा जाना रसोई से आती किसी स्वाद की गंध

    अपनी आस्तीन में पाकर

    नीरव पिछवाड़े में कुछ बूझने की चाह में

    एक छोटी-सी जगह में कोई तिल भर कुनिया खोजता,

    तो कुछ दिनों में आए केवल एक समय

    दुनिया को बाँटने

    जिसे याद रखने के लिए भूलना पड़ेगा सब कुछ

    ज़रूरी सामान की पर्चियों के साथ अकेले,

    जीने के लिए केवल साँस ही नहीं

    प्रेम की आँच मन के सायों में

    हाथ जो गिरते हुए थाम लेता

    रोज़ की रेज़गारी गिनतारा में जमा

    बेगार के उधारों को जोड़ते

    जर्जर समकाल में घबराए सूखे गालों को टटोलते

    नहीं देखा मैंने अब तक इस व्यतीत को,

    आईने के भीतर से

    जब लगाता हूँ मैं छपाक उसके उजले अनजान में

    कुछ पाने कुछ खोकर

    स्रोत :
    • रचनाकार : मोहन राणा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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