Font by Mehr Nastaliq Web

पंद्रह अगस्त

pandrah august

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

रघुनाथ दास

रघुनाथ दास

पंद्रह अगस्त

रघुनाथ दास

और अधिकरघुनाथ दास

    पंद्रह अगस्त आज—

    पाँवों में स्पर्श लगता अभिनव

    नूतन सोपान!

    इसके नीचे रह गया—

    दो सौ वर्ष लंबा

    आदमी के ख़ून-पसीने,

    सत्याग्रही मुक्त्तिकामी जनता का

    आग्नेय विद्रोह!

    रह गया—

    गोरों का प्राणहीन पूँजीपति लुब्धक कौशल...

    उत्तमाशा अंतरीप... पण्यपोत... कंपनी का समय

    क्लाइव की कूटनीति... व्यापारी का सुनहला-षड्यंत्र

    मीरक़ासिम... पानीपत... हे नवाब,

    हे दुर्दांत सिख, बादशाह, पेशवा!

    संधि करो, नत करो सिर,

    अर्घ्य दो भारत सिंहासन पर

    हाड़-मांस का।

    पद लेही कुत्ते ज़मींदार के पग की लालसा,

    नालिश... क़ुर्क़... नीलाम

    चक्रवृद्धि ब्याज का हिसाब...

    अकाल और सूखा... महमारी

    अंधकार ही... अंधकार,

    कंकाल ही कंकाल आर्त

    कोटि-कोटि कंठ में हाहाकार।

    असहाय ग्रामीण रोते जब,

    जब भी चीख़ते

    तैयार थी लाल आँख, लाल पगड़ी।

    हे लाटसा’ब,

    हे सा’ब, हे हाकिम, हे बाबू!

    इसे कैसा शासन कहें,

    आदमी को करने को क़ाबू

    सारे हैं नागफाँस!

    सुनहला देश हुआ छार-खार, सर्वनाश!

    सर्वहारा हम सब—लूटा है धन, मान, श्रम,

    जीवन का सबल पात्र-प्रिय विश्वास का धर्म,

    सब कुछ दिया बलि,

    धर्म नहीं करें त्याग

    हे सिपाही, धर्म-रण में उठो,

    जाग वीर जाग!

    रह गई—

    गोलियाँ, बर्छे का नोक, लाठी की चोट

    हत्या और फाँसी,

    थाना, जेल, कालापानी, आर्डिनेंस

    हवा तूफ़ान रख गए दाग़...

    चौरी-चौरा और इंचुड़ी,

    दांडी यात्रा, जलियाँवाला बाग़,

    जनता के यात्रापथ में विजय वरमाला वह—

    मुक्त्ति मशाल जला,

    तेज़ होते गाँव पर गाँव,

    कंकाल माँग करता,

    जीने का न्याय अधिकार

    हमारे ख़ून से कब तक रँगा होगा झूठा दरबार?

    चारों ओर क़ानून का जाल,

    दासता की बेड़ियाँ।

    अमंगल का शासन चालू रखता शोषण का कल।

    इलके साथ नहीं कोई सहयोग—

    एकजुट होना भाई, भारत के तीस कोटि लोग।

    तीस कोटि भारतीय अन्नहीन सर्वहारा भाई

    कंकाल हुआ देश,

    मुट्ठी भर नमक, जीने के लिए

    चाहें हम, प्राण रहते खुले मुट्ठी का कसाव

    बंदूक़ की आवाज़ का छाती दिखाकर देंगे जवाब।

    हे दिरात्मा. बल के उपल से,

    रोक पाया कोई सत्यरथ मिथ्या के अंचल में?

    बंदी कब तक रखेगा तेजस्वी सत्य का स्फुलिंग?

    गरज जब उठता है सुप्त कोई सिंह?

    ऊर्णनाभ शत कोटि विषखोल बाँध पाए उसे?

    हिमाचल नहीं टलता तूफ़ान के प्रखर निश्वास से।

    आलोक का शर भेद करे आछन्न आकाश में,

    भस्म कर देता सारा व्याप्त अंधकार,

    न्याय का तैरता रवि हँस उठे महान, उदार।

    गौरव में और फिर उन्नत

    पावक-पवित्र, दीप्त,

    जीवंत अक्षत,

    स्पर्धा थी उसकी,

    फूँक में बुझा दे शिखा एक प्रदीप की,

    किंतु एक फूँक से तेज़ हो गई सहस्र अंतर की।

    रोष में भर बोया था भूमि पर सत्य बीज एक

    लुप्त नहीं होता, उत्पादन करता कोटि वह एक,

    सत्य और न्याय हेतु भारत की दुंदुभी,

    बंदूक़ की आवाज़ में वह कभी नहीं डूबी।

    वह तो पांचजन्य है

    बज्रस्वर में मुक्ति का वार्तावह... दासता का दैन्य

    कंकाल को आर्शीवाद देता वह, देता जीवन्यास

    दुर्बल को बल देता,

    आत्याचारी प्राणों को त्रास

    इस पुण्य संग्राम में सैन्य नहीं मरते...।

    बरसे गोली वक्ष पर, सिद्ध वह,

    क्या करेगा बिद्ध कोई उसे?

    मर कर ही तो शहीद,

    स्मृतिदीप्त, होता अमर वह!

    पंद्रह अगस्त आज!

    आज

    दीर्घ अमावसी मार्मिक कराल दुःस्वप्न

    आज गया टूट।

    सुनें—

    बज उठे ललित निक्वण

    प्रभात के पदक्षेप में...

    कंठ से झरती शांति सुधा, मधु आशीर्वाद

    जनता के विजयटीका मे शोभित ललाट

    यह शुभ्र प्रभात बंधु युग-युग में विराट!

    कितना सुहाना प्रभात... वायुमंडल...

    लगता है जैसे

    उत्कल ऊषा में हँस उठे अगणित मंगल

    कितनी सुहानी शोभायात्रा, हर्ष जयध्वनि

    आज से लिखी होगी भारत की नई जीवनी।

    कितनी प्रिय यह मुक्ति, यह स्वाधीनता,

    अंधकार युग पर आया है मंगल प्रभात

    भारत उपकूल पर मैं करता हूँ स्वागत।

    यात्रीगण रहना सावधान!

    राह में नहीं यह अंतिम सोपान!

    संग्राम अभी भी पूरा नहीं

    आसपास फिर रहे रक्तमांस लोभी

    गीध फिर रहे, झाँपने श्रमिक के प्राण,

    आज भी बाँटते रोटी उसकी मालिक-साहू

    आज भी भारत का ग्रामीण सोता उपवास में

    कल वह फँसेगा प्राणघाती काल नागपाश में।

    उसके दंशन में जलेगी समाज में आग,

    अतृप्त धरा पर पैदा कर हज़ारों कलह।

    भारत सिंहासन के लिए लालायित कंस के दायाद

    धद्मवेशी लक्षभार पद्म की माँगते सौगात।

    आलोक के सद्यजात शिशु की रुँधने साँस,

    चल रहे कूट कपट,

    रुँधने जीवन विकास।

    अतः यात्रीगण, रहना होशियार!

    जाग्रत जनता मिलजुल चलना

    बंधु रहो सब होशियार

    मुक्ति का निशान ऊँचें नभ में करो,

    खिल रहा सुनहला प्रभात।

    जीवन का अधिकार हम सब

    जितने हैं वंचित कंकाल।

    मुक्त कंठ से गाओ सब जनता की जय।

    यह जीवन हो सत्य, पूर्ण,

    जीवन हो शांतिमय!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 81)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : रघुनाथ दास
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए