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पंच प्यारा

panch pyara

डॉ. अजित

डॉ. अजित

पंच प्यारा

डॉ. अजित

और अधिकडॉ. अजित

    वो पाँच स्त्रियों का

    अकेला प्रिय पुरुष था

    पाँचों उसे कर रही थीं

    एक साथ प्रेम

    बिना किसी पारस्परिक बैर-भाव के

    वो एक कुशल सारथी के जैसा था

    सबको छोड़कर आता था

    उनके सपनों की मंज़िल तक

    एकाधिकार वहाँ अप्रासंगिक था

    उस पर पाँचों का सामूहिक अधिकार था

    मगर नहीं टकराता था

    किसी का अधिकार दूसरे के अधिकार से

    वो पंच प्यारा था

    जिसे उम्मीद ने गढ़ा था

    बिना शर्त के प्रेम के लिए

    उसे देखा जा सकता था प्रायः

    दिन और रात के संधिकाल पर

    सूरज और चाँद के खत बदलते हुए

    वो अंगड़ाई की एक मुस्कान के जैसा था

    जो तोड़ता था आसक्ति की तंद्रा

    उसको लेकर ठीक वैसी थी अमूर्तता

    जैसी होती है विचारों की जम्हाई के वक़्त

    उसे महसूस किया जा सकता था

    झरने के वेग की तरह

    वो नदी की गहराई में अकेला पड़ा पत्थर था

    जिसे समंदर तलक जाने की कोई चाह थी

    पाँच तारों की युक्ति से बना वो पंच ऋषि था

    जिससे रश्क होता था सप्त ऋषि तारामंडल को

    पूर्वोत्तर के लोक नृत्य की तरह

    वो रहता था उनका पाँचों के मध्य

    कभी धरती तो कभी आसमान बनकर

    भले ही उन पाँचों स्त्रियों की आपस में घनिष्ठता थी

    मगर वो अकेला था उन पाँचों का घनिष्ठ

    उसका होना सह अस्तित्व के दर्शन का

    मानवीयकरण होना था

    किसी को नहीं थी आपस में कोई ईर्ष्या

    उसको लेकर थी सबके मन में

    अपने-अपने क़िस्म की दिव्य आश्वस्तियाँ

    वो अकेला मुसाफ़िर था

    जिसकी जेब में थे पाँच अलग-अलग पते

    मगर उसे कहीं पहुँचना था

    कहीं अटकना था

    वो भटक रहा था अकेला इस ग्रह पर

    पाँच आत्मीय शुभकामनाओं के भरोसे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : डॉ. अजित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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