पाँच प्यार कविताएँ
panch pyar kawitayen
एक
मैंने गुलाब से पूछा
तेरा बचपन कहाँ है
कहने लगा—काँटे को पता है
पर्वत-चोटी से पूछा
तेरी इंतज़ार कितनी है
कहने लगी—गुफा से पूछना पड़ेगा
समंदर से पूछा—तू कब सोता है
कहने लगा—तूफ़ान ही बता सकता है
जल से पूछा—तू कब सूखता है
कहने लगा—मल्लाह से पूछना था
माँ से पूछा—बात कब बनी थी?
कहने लगी—धरती ही जान सकती है
पूछने का यह सिलसिला जारी था
कि बिजली की तेज़ चमक-सी
कोई आवाज़ चीरती हुई गुज़र गई
और कहने लगी
मैं तेरी दुखती नस हूँ
कुछ मेरे से भी पूछ,
अरे! मुझसे भी पूछ लिया कर!
दो
अजीब है कि जो कुछ भी मैंने
तुझे बतलाया
तूने मान लिया
क्योंकि वो तेरे बारे में था
मगर वह कुछ नहीं जाना जो मैंने बताया नहीं
तूने औरत को केवल, औरत की तरह
और मर्द को केवल एक मर्द की तरह देखा है
अफ़सोस बस यही है
जो तूने जाना नहीं
वो अब बतलाया नहीं जा सकेगा
तीन
गहरी रात और मैं
चलते-चलते यहाँ पहुँचे हैं
वहाँ एक आबशार है
अभी-अभी जहाँ से रोशनी नहाकर गई है
इस गूँज में
मुझे बार-बार क्यों सुनाई देता है
अपना ही नाम
यह आबशार ‘मुझे क्यों’ बुलाता है
चार
यह पक्षी
जो अभी-अभी सूरज के कुंड मे से
अपने पर तोलता हुआ निकला है
और दूधिया बादलों में धँस गया है
मुझे इसके गीले परों को देखना है
मैं एक कविता से दो-चार हूँ
पाँच
उन्होंने क्षितिज की ओर देखा
और कहा, बस!
ज़मीन और आसमाँ का इतना ही अंतर है?
उसने उनकी तरफ़ देखा और
कहा—हाँ
ज़मीन और आसमाँ का इतना-सा अंतर है!!
- पुस्तक : ओ पंखुरी (पृष्ठ 29)
- रचनाकार : मोहनजीत
- प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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