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ओ मेरी शापित कविताओं

o meri shapit kawitaon

नील कमल

नील कमल

ओ मेरी शापित कविताओं

नील कमल

और अधिकनील कमल

    बदचलन हो गए हैं शब्द

    बदल दिए हैं सुलूक उन्होंने

    कविता में

    अब लिखता हूँ प्रेम तो

    नहीं खिलता है कोई एक फूल

    बस एक गागर रीती-सी

    डूबती जाती है

    हृदय की गहराइयों से

    डुब-डुब डुबक-डुबक की

    आवाज़ें आती हैं

    घृणा लिखते ही काग़ज़ पर

    नहीं छिटकती हैं लुत्तियाँ

    दु:ख लिखने पर नम नहीं होता

    कठिन करेज कोई पहले जैसा

    सियाही आँसुओं की हो या

    रोशनाई हो लहू-सी

    इबारतें अब नहीं खिलती हैं

    अँधेरे में जुगनुओं की तरह

    इन शब्दों का क्या करूँ मैं

    जो मेरे आस-पास पसरे रहते हैं

    सहवास के बाद की निर्लिप्तता में

    निस्पंद ठंडे जिस्म हों जैसे

    आख़िर कब टूटेगा कविता का तिलिस्म

    आख़िर कब लिखी जाएगी वह कविता

    जिसके शब्द बोलते होंगे

    कि जैसे पान खाए होठों से

    बोलती है सुर्ख़ी

    मेरी शापित कविताओं

    तुम्हारी मुक्ति के लिए, लो

    बुदबुदा रहा हूँ वह मंत्र

    जिसे अपने अंतिम हथियार की तरह

    बचा रखा था मैंने

    तुम्हें ही वरण करने थे

    मेरे कवच और कुंडल

    मुझे काम आना था इसी तरह

    कुछ शब्दों को अर्थ सौंपते हुए!

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह पेड़ों के कपड़े बदलने का समय है (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : नील कमल
    • प्रकाशन : ऋत्विज प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

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