आदरणीय शैतान जी,
आशा है कि आपको यह संबोधन बुरा नहीं लगेगा।
जैसा कि दूसरों को लगता है, मुझे पूरा विश्वास है।
आपके बहुमूल्य वक़्त में से थोड़ा सा ले लेने के लिए क्षमा
कीजिएगा।
आशा है कि आप ख़त पूरा पढ़ेंगे।
(मेरी आत्मकथा में दूसरे बड़े-बड़े ख़तों के साथ यह भी छपेगा।)
आप तो किसी से क्षमा-प्रार्थना करते नहीं, पर चाहते होंगे कि
दूसरे करें।
सृष्टि के आरंभ से बिना किसी प्रमोशन की आशा के चौबीसों घंटे काम
करने वाले आपको मेरा अभिनंदन स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं
होगी, मेरा विश्वास है। आपको मालूम ही होगा कि लंबे-लंबे वाक्यों में
विचार प्रकट करना आजकल का रिवाज है। ख़त लिखते वक़्त यदि ऐसा
लगे कि मुँह के सामने माइक है तो मेरी वाग्धारा लंबी व लच्छेदार बनकर
अनन्तता के छोर को पकड़ लेती है। हकलाने वालों को सोचने का वक़्त
मिल जाता है, किंतु मुझमें ऐसी योग्यता कहाँ!
महाशय! नियमानुसार इस संबोधन से पुकारने पर आप बुरा मत
मानना। मैं तो यही जानना चाहता हूँ कि आपके अण्डर काम करने पर मेरी
बेरोज़गारी ख़त्म होगी क्या? गुण्डा हायर, हिंसक राजनीति, ड्रग्स, प्राइवेट
ट्यूशन, स्मगलिंग, जाली नोटों की छपाई, जुलूस, हार्डवेयर एंड सॉफ्टवेयर
घेराव, उत्सव-कमेटी के लिए चंदा आदि सब के लिए ‘ए’ ग्रेड सर्टीफिकेट
हैं। सबसे ऊपर मुख्यमंत्री का सिफ़ारिशी लैटर है। जल्दी ही आप युद्ध
कला सीखने, ओणम पर नए कपड़े ख़रीदने या हाथी-दौड़ देखने इस
शहर में आ रहे हों तो मैं अपनी क्वालिफिकेशन दिखाने के लिए पूरी तरह
से तैयार हूँ। जब मैं नरक आऊँ तो आपकी मर्ज़ी के अनुसार काम करने के
लिए पर्याप्त वेतन के साथ अपाइण्टमेण्ट देना काफ़ी है। मुझसे अच्छा
पी.ए. मिलना मुश्किल है। अपनी तारीफ़ ख़ुद करना कोई
डिस्क्वालिफिकेशन तो है नहीं। वहाँ एक फ्लैट और मिनिमम वेतन काफ़ी
होगा। शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा। आप मुझे अपने योग्य सिद्ध करने का
मौक़ा दीजिए। काम के अनुसार बोनस और महँगाई भत्ता मिलना चाहिए।
(महँगाई बढ़े या नहीं बढ़े) इसलिए अलग से उल्लेख नहीं किया। (यहाँ
से कुछ मँगवाना है तो फ़ोन पर बता दीजिए, मैं भिजवा दूँगा। ब्राण्ड कौन-
सी चाहिए?) आपके पास पहुँचने के लिए वीज़ा और ग्रीन कार्ड शीघ्रातिशीघ्र
भिजवा दें। जवाब के लिए स्टाम्प लगा, सैल्फ एड्रेस वाला लिफ़ाफ़ा
(22x22) भेज दीजिए। यहाँ कोई काम मिल गया तो आना पोस्टपोण्ड
करना पड़ेगा। शेष नौकरी मिलने पर—
- पुस्तक : मेरी दीवार पर (पृष्ठ 66)
- रचनाकार : अय्यप्प पणिक्कर
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2003
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