जंगल का आत्मकथ्य
इन दिनों मैं किताब नहीं पढ़ रही हूँ
इन दिनों मैं पढ़ रही हूँ जंगल
कहानियों में पता लगा रही हूँ पलाश के मुरझा जाने का कारण
जंगल अपने आत्मकथ्य में लिखता है
उसकी प्रेमिका का हाथ पकड़कर पतझर ले गया उस ओर
जिस ओर लगी थी बड़ी भयानक आग
पृष्ठ संख्या 2020 पर एक जगह जंगल लिखता है
पानी की तलाश में भटकता हुआ प्यासा हिरन
उन्हें और स्वादिष्ट लगता है
जब जंगल की आग में भूनकर
बित्ता भर रह जाती है उसकी देह
हिरन क्या जाने ज़रूरी विमर्श क्या है
हिरन की प्यास, हिरन की मौत या हिरन का गोश्त
बीच में कहीं जान-माल की हानि का उल्लेख करते हुए लिखा है
नुक़सान का क्या है वही पुरानी जड़ी-बूटियों का जल कर राख हो जाना
नई पौध के लिए फल ने कौवों और कोयलों की आँख से बचा रखा था जो कुछ वह सब बाँस के जलते
कोपलों के साथ
पट-पट कर शोक गीत गाते हुए विदा ले रहे हैं अब
कैसी तो प्रजातियाँ थी गहरे हरे कुएँ में धँसी
जिनकी देह में 'एक सभ्यता' की अंतिम पंक्तियाँ लिखने भर की हिचकी बाक़ी है
बच्चों के लिए लिखते हुए जंगल बड़बड़ाने लगता है
जंगल में आग लगी दौड़ो-दौड़ो
भागता वही है जिसके पैर के घावों में जंगल की मिट्टी का का लेप लगा हो
बच्चों को गाते हुए भीड़ में रेलगाड़ी बनाकर भागना अच्छा लगता है
बच्चे अभी भी इस गीत को खेलते हुए गाना नहीं भूलते
बच्चे क्या जाने ज़रूरी विमर्श
जंगल की आग, जंगल की दौड़ या जंगल की मौत
पृष्ठ संख्या 2021 के अंत में जंगल ने अपने आत्मकथ्य को व्यवस्थित करते हुए लिखा है
कि ख़रगोश, उल्लुओं, बाघों और चींटीख़ोर की ख़त्म होती प्रजातियों पर कवियों को लिखनी होगी कविताएँ
कहानियों में जंगल के चरित्र-चित्रण पर कुछ काम किया जा सकता है
बीज, मिट्टी, फल-फूल, हवा और पानी का अपना भी सृष्टि-विमर्श होता है
अंतिम पृष्ठ पर बस यही लिखा था
कि जब कभी लौटकर आना चाहे जंगल के बाशिंदे अपनी जगह
तो उन्हें निराश मत होने देना
यह लैपटॉप की स्क्रीन पर लगी आग नहीं है
यहाँ सचमुच जंगल में आग लगी है दौड़ो-दौड़ो!
- रचनाकार : पूनम वासम
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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