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नतीजे, ख़रीते, लुब्बेलुबाब

natije, kharite, lubbelubab

विजय देव नारायण साही

विजय देव नारायण साही

नतीजे, ख़रीते, लुब्बेलुबाब

विजय देव नारायण साही

और अधिकविजय देव नारायण साही

    लैस सिपाहियों की तरह

    आस्थाएँ, मान्यताएँ, व्याख्याएँ, नतीजे, ख़रीते, लुब्बेलुबाब

    मैदान में उतरते हैं

    सीटियों की ललकार पर

    क़वायद करते हैं

    जिन्हें हफ़्तों से कोई मनोरंजन नहीं मिला है

    वे सब चहारदीवारियों पर

    उचके-उचके नज़ारा देखते हैं।

    ये जादूगर हैं, वैद्य, डॉक्टर, चोर, गिरहकट

    फिर भी दिन-दहाड़े

    चीख़-चीख़ कर आवाज़ें करते हैं

    तन-तन कर चलते हैं, उछलते हैं, चक्कर काटते हैं

    धावे बोलते हैं

    आज़माइशी मुकाबले करते हैं

    हाथ मिलाते हैं

    करतब दिखाते हैं

    और झंडा उतरने के बिगुल का

    इंतज़ार करते हैं।

    सलामी ठोंकते हैं

    बंदूक़ें बग़ल में दबाते हैं

    वापस जाते हैं

    वर्दियाँ उतारते हैं

    कोठरियों में बंद

    एक एक सो जाते हैं।

    रात-रात टँगी हुई वर्दियों की सिलवटों से

    निकलते हैं

    भावनाओं के समूह लहूलुहान

    आँखें नचाते

    कूल्हे मटकाते

    हवा में अपनी खोपड़ियाँ उछालते

    टन्-टन् तालियाँ बजाते

    नाचते-कूदते

    अँगूठे दिखा कर छू-मंतर करते

    और यकायक निढाल होकर

    दरवाज़े के शिगाफ़ में समा जाते...

    यों ही

    सफ़ पर सफ़

    आते हैं

    घोंट कर दबाए हुए

    पिशाच प्रश्नों के जलूस

    रात भर

    और वे गहरी नींद में जागे हुए

    अकेले उतान

    देखते हैं टकाटक

    बोल नहीं पाते

    छाती पर हाथ रखे

    निपट अनाड़ियों की तरह

    घी... घी... घी... करते हैं।

    और वे सुबह होने की कामना भी नहीं कर पाते

    क्योंकि उनकी कामनाएँ भी

    मुँह बिचकाने वाले अजनबियों में शामिल

    शिगाफ़ों के रास्ते

    बाहर चली गई हैं।

    रात भर!

    रात भर!

    सवेरे सवेरे

    फिर निकलते हैं

    दरबों के भीतर से

    आँके-बाँके चाक-चौबंद

    हट्टे-कट्टे पट्ठे

    सलामी ठोंकते फेफड़े फुलाते

    नतीजे, ख़रीते, लुब्बेलुबाब!

    जाने किस जादू के प्रभाव से

    कोठरियों के बाहर सुबह होती है

    जाने किस जादू के प्रभाव से शिगाफ़ों के रास्ते रोशनी आती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मछलीघर (पृष्ठ 47)
    • रचनाकार : विजय देव नारायण साही
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1995

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