नरक में आग ढोने वाली कविताएँ
narak mein aag Dhone wali kawitayen
एक
मैं जिस उम्मीद के साथ
आता हूँ तुम्हारी ओर
वह बची हुई नहीं लगती
मैं जिन हाथों के खुरदुरेपन को
चूमना चाहता हूँ
वे साथ नहीं देते
वे औरतें
जो शताब्दियों से गा नहीं पाईं
अपनी उदासी के गीत
मैं उनकी ख़ामोशी
छू नहीं पाता
ऐसा नहीं कि हमारे बीच
संवादहीनता हो
या परस्पर कोई आधार न हो
कुछ संकोच या झिझक है
कह नहीं पाता
मैं लिखता हूँ
लेकिन अचकचाता चला जाता हूँ
मेरा स्वर भारी लगता है
मैं झुँझलाता हूँ
शब्द और हमारे बीच इतना
धुँधलापन क्यों हैं
हम आख़री बार कब मिले थे?
क्या कविता का वह घर हमें याद है?
जहाँ हम जड़ों की गहराई तक उतरे थे
और खँगाला था एक-दूसरे को
हम अपरिचित रहे
हम एक अलग दुनिया में थे
जिसका मतलब शब्दों और अर्थों से नहीं
था हमारी संवेदनाओं से
हमने अच्छा वक़्त साथ बिताया
इस यक़ीन के साथ जुड़े रहे
हम तय नहीं करेंगे अपनी सीमाएँ
हम ख़ेद नहीं मनाएँगे अपनी नाक़ामियों का
हमारे चुने रास्ते
भले चमचमाती सीढ़ियों की ओर न जाते
लेकिन उनमें मृत्यु का अनंत स्वाद
जीवन की फूटती कोंपलें
हमारे बीच नई सरगमें लेकर आती
हम उत्साह और अपनी उदासी से भरपूर रहे
वक़्त बीत रहा है
हम नहीं हैं आस-पास
हम दूर तक एक लहर लेकर आए
लेकिन हमने अलविदा नहीं कहा
यात्राएँ थमी हुई हैं
और हम विश्वास करने के बजाय
देख रहे हैं अपनी आँखों में
स्थगन और विस्थापन के दंश
दो
उम्मीदें टूट रही हैं
लेकिन मुझे प्यार है तुमसे
मैं आकाश के लिए नहीं
धरती के लिए चाहता हूँ
तुम्हारी जड़ों का विस्तार
कविताएँ भले न गाई जाएँ
लेकिन उनकी आँच
देती रहेगी ताप
हमारे ठंडे शरीर को
मैं जिसके लिए लिखता हूँ
वह ठंडी रोशनी,
छूटे बंदरगाह पर प्रतीक्षाएँ,
नावों का खोना,
चिड़ियों की ख़ामोशी,
बारिश का अनंत विलाप
क्या तुम सुन रहे हो
हमारा चुप रह जाना
क्या तुम आ रहे हो
दरवाज़ों से बाहर
मैं कहीं आता हूँ, जाता हूँ
इससे फ़र्क़ नहीं पड़ता
मेरी आवाज़ सुनकर मत आना
वे गीत जो गुनगुनाए जा रहे हैं
ज़रा अपनी खिड़कियाँ खोलना
बाहर, ताज़े ख़़ून से लिखी जा रही हैं
तुम्हारे लिए
नरक में आग ढोने वाली कविताएँ!
- रचनाकार : नीलोत्पल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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