निमकी से ज़्यादा हो
जब नमक खाने की चाह
ऐसी तेज़ हो नमक खाने की चाह
कुछ प्यास जैसी ज़रूरत बन जाए
उत्कंठा, आकाँक्षा, तीव्र इच्छा
प्रेमी के दर्शन से इतर की बात
चुंबनों के बिंब से परे की बात
किसी को भी चाहने से फरक बात
जब होठों को याद आए
केवल नमक का स्वाद
हो ऐसी थकान
ऐसी हो पदयात्रा कोई
न विराम लेने दे
न आराम
दांडी से मार्च की
यात्रा कोई
रथयात्रा नहीं
धर्म का ध्वज नहीं
इमारतों की लड़ाई नहीं
न ज़मीन की
बस ये अकेले ही
अकेले की लड़ाई
ये बौद्धिक-सी ख़िलाफ़त
यों उजाड़ दिए जाने की
मौसम के थपेड़ों में पैदल
शून्य से बहुत कम के तापमान में
—35, 38 में भी, 40 तक में
पश्चिमी कनाडा की न्यूनतम डिग्री की ठंड भी
दिल्ली की 40 डिग्री का ताप भी
दिल्ली की 40 डिग्री का भाप भी
गर्मी उसकी प्रचंड उदंड झेल जाए ऐसी यात्रा
पाती नहीं जैसे जो आश्रय कोई
हो नहीं कहीं जैसे प्रश्रय कोई
हो जैसे कोई बहुत देर से यात्रा में
यात्रा में हो केवल
और कहीं नहीं
और बस बहुत थकान हो
थकान हो
थकान केवल
भोजन दुर्लभ भी हो
खाने पर ताने भी
कुछ वेलफ़ेयर की राजनीति हो
उससे पहले ससुराली
कि हो नहीं तुम भाग्यशाली
हो तो कर दिखाओ
बनाकर ज़िंदगी अपनी
बसाकर ज़िंदगी अपनी
साबित कर भाग्य
जबकि हम कोसते हैं
दिल मसोसते हैं
नमक मत माँगो
ज़माना सब कुछ के मिश्रण का है
ज़माना मिश्रित स्वाद का
ज़माना नमक चीनी के साथ का है
ज़माना अजीनोमोटो का
देशी अख़बार में उस पर लेख भी हों
पर मॉल में उसका इस्तेमाल है
बेधड़क और बेख़ौफ़
इन फ़ूड स्टाॅल्स के आगे की
लाइन कुछ कहती है
बस दे नहीं पाती
उसे सादे सादे से
घरेलू छौंक का
शुद्ध नमकीन स्वाद
और जबकि बात यह नहीं थी
कि बनाना था अपना नमक
अलग दाँव-पेंच थे
इस भूमंडलीय युग के
और बहुत वर्जित था
नमक से टाँस खाना
गर्मी की भी मार बढ़ रही थी
बहुत ज़रूरी था इन बातों पर सेमिनार
कि बढ़ते रक्तचाप की क्या वजहें थीं?
बस नींबू के समूचे छिलके को घिसकर
और फेंककर उसका लेमन ज़ेस्ट
जो नमक के सिरके में बनाती थीं
मेरी नानी निमकी
अभी भी तरो-ताज़ा कर जाती है
नींबू के फूलों की ख़ुशबू की तरह...
- रचनाकार : पंखुरी सिन्हा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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