उन्होंने मेरे नाम को छोटा किया
जिन्होंने लाड़ से पुकारा,
अधिकार का पहला संकेत
मुझे मिलता है किसी घरु और लाड़ले नाम से।
पैंतीस की उम्र में
मेरे पास अपने नाम के छोटे बड़े कई युग्म हैं।
ये युग्म माँ के लिए अकल्पनीय हैं,
उसने मेरा यह नाम सोचा,
मेरे पैदा होने से पहले
अपनी एक विद्यार्थी के नाम पर,
जो उसे कक्षा में सबसे प्यारी थी,
पहनती थी सलीक़े से यूनिफ़ॉर्म
और अँग्रेज़ी लिखने में होशियार थी।
मैंने कभी नहीं देखा वह कौन लड़की है,
जिसे माँ ने इतना प्रेम किया
कुछ विद्यार्थी लड़कियाँ होती हैं,
जो स्मृति में तो रहती हैं
लेकिन दसवीं के बाद आँखों से ओझल हो जाती हैं।
माँ चौकन्नी हो जाती,
जब किसी ने मेरा नया नाम रखा।
उसे डर लगता,
शायद मैं प्रेम में पड़ रही हूँ
या ऐसी दोस्ती में,
जहाँ मेरा दिल टूट सकता है
वह सुबह मुझे जगाती,
मेरे नाम का शुद्ध उच्चारण करते हुए।
ऐसी चेतावनी को मैं हँस कर सुनती,
जबकि दूसरे नाम कानों में तैरते रहते।
प्रेम के न रहने का,
दोस्ती के छूट जाने का,
पहला संकेत वही रहता
घरु लाड़ला नाम वापस ले लिया जाता है।
और मुझे सुनना पड़ता है अपने नाम का,
ठंडा और उदासीन उच्चारण
जैसे कोई सुनता है,
न्यूज़ रीडर से भूकंप में बच गए लोगों के नाम की सूची,
जिन्हें अभी तक कोई घर से लेने नहीं आया है।
- पुस्तक : आश्चर्यवत् (पृष्ठ 80)
- रचनाकार : मोनिका कुमार
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2018
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