हथेली पर कई बरसों का इंतज़ार
रुख़ जिसका घटाटोप बादलों जैसा
मिज़ाज उन हवाओं-सा अनिश्चित
एक पल क़रीब आती दिखती हैं जो
दूसरे पल लौटने की तैयारी में होती हैं
क्षितिज का अमूर्त असीम विस्तार
कच्छ का रेतीला भार
धार का असीम सौंदर्य
हिमालय का भी दर्प हुआ खंडित
इंतज़ार के इन भारी-भरकम पाँवों तले
जीवन की इस क़तर-ब्योंत का कोई सानी नहीं
न तीन पहरों की राज़दारी का
समूची कायनात बरसों पहरों की राज़दारी करते बूढ़ी हो गई
इस घड़ी ज़िंदगी के पैंतरे भी
दुनियादारी-सी रँगरेज़ी छाप छोड़ने लगे
कोई शरणार्थी कोना मेरे नज़दीक आकर
अपनी छाया छोड़ता नहीं दिखता
मैं, घने बियाबान के एक तीखे झुरमुट में
अपने एकमात्र इंतज़ार के साथ
ज़िंदगी कमाल पाशा की जादूगरी नहीं
जान चुकी थी यह रहस्य काफ़ी पहले ही
फिर ऊल-जलूल हरकतें करतीं
उछलती-कूदती-फर्लांगती ज़िंदगी
आख़िर मुझसे चाहती क्या है?
आस्था दर्शाता हुआ धर्म-शास्त्रों की नैतिकता का पलड़ा
हर हाल में भोगती मैं विज्ञान के तमाम अनुशासनों का दंड
उस पर ये भारी इंतज़ार
सहस्र-द्वार से कुंडलिनी तक
बेरोक-टोक बहता एक सुख
बाहर का एक भी रास्ता जिसे नहीं मालूम
इस सुख ने हर बार दुनिया का मलिन चेहरा देखने से साफ़ इनकार कर दिया है
हबे-मामूल प्यास में तब्दील हो गई हूँ मैं
देखा जब मैंने
मन की शांति को इंतज़ार से दोस्ती गाँठते हुए
अब मुझे एक रोशनदान चाहिए
एक नेक नीयत
और चाय की एक प्याली।
- रचनाकार : विपिन चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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