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न हो इतिहास

na ho itihas

अनुवाद : श्रीनिवास उद्गाता

प्रतिभा शतपथी

प्रतिभा शतपथी

न हो इतिहास

प्रतिभा शतपथी

और अधिकप्रतिभा शतपथी

    तुमने इतिहास में रहना चाहा

    और इतिहास ही में रह गए

    तुम्हें पता था या नहीं क्या मालूम

    कि तुम उबर नहीं पाओगे इतिहास से

    उठकर नहीं पाओगे मेरे पास

    मेरी गोद को

    पर मैं चाहती थी कि

    तुम बनो नहीं इतिहास

    और रहो तुम पास-पास मेरे

    तुम्हारी दो आँखें ताराओं की भाँति

    चलती रहें मेरे साथ-साथ

    स्वर तुम्हारे आधी रात मुझे

    दिलासा की लहर बन सहला दें;

    विस्तारित मयूर चंद्रिका की भाँति

    मेरी गोद पर

    तुम्हारा स्नेह का समीरण डोलता रहे

    और एकांत व्यक्तिगतता मेरी

    कभी भी बने इतिहास

    इतिहास की प्रस्तरीभूत नीरवता को

    मैं जितना जानती हूँ

    समय की उदासीन नज़र से

    जितना मैं समझती हूँ

    उसी से मुझे अहसास है कि

    इतिहास के पृष्ठों के बाहर

    तुम ही नहीं सकते

    समय की परत-परत गहराई से

    उठकर नहीं सकते

    राह इस भाँति सूनी होगी

    ठंडी हवा बहती होगी बार-बार

    अँधेरा छाया होगा चारों ओर

    कल्पना का इंद्रजाल

    तुम्हें बनाता बिगाड़ता होगा

    पता नहीं कई बार

    इतिहास मुझे पहचानता है

    तुम्हें

    इतिहास है राजाधिराज

    पहचानता ही नहीं आम आदमी को

    चिरजीवन के आस्फालन से

    कुचल डालता है वह

    हृदय के निवेदन को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : समय नहीं है (पृष्ठ 62)
    • रचनाकार : प्रतिभा शतपथी
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन

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