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लोक गायक

lok gayak

प्रभात

प्रभात

लोक गायक

प्रभात

सतही तौर पर उसे किसानों और श्रमिकों का कवि कह सकते हैं

उनके जीवन से जो शब्द बनते हैं

प्रायः उन्हीं को काम में लेता है वह कविता रचने के लिए

धूल की तरह साधारण शब्द

ओस की तरह चमकने लगते हैं उसकी कविता में आने पर

बीजों की तरह अँकुआने लगते हैं गाए जाने पर

उसका विशाल वाद्य घेरा

मृत जानवर की खाल से बनता है

जब वह गूँजता है

पास ही जंगलों में खड़े भैंसे

त्वचा पर स्पर्श का अनुभव करते हैं

खेतों की मेड़ पर खड़े धवल फूलों वाले काँस

काँसों की जड़ों से सटकर बैठे बैल

इधर-उधर खड़े तमाम छोटे-बड़े पेड़ और झाड़

छोटे और बड़े क़द के पहाड़

कान देते हैं उसकी आवाज़ पर

यह आवाज़ जिसमें आँधियाँ हैं

आँधियों की नहीं है

यह आवाज जिसमें बारिशें हैं

बारिशों की नहीं है

पवन झकोरों और बारिश की बौछारों-सी

काल से टकराती आती यह आदिम आवाज़

पृथ्वी पर आदमी की है

अर्द्धरात्रि में जब वह उठाता है कोई गीत

रात के मायने बदल देता है

अगम अँधेरों में गरजते समुद्रों के मायने बदल देता है

अनादि सृष्टि में चमकते नक्षत्रों के मायने बदल देता है

वह हमें बाहर के भेद देता है

वह हमारे भीतर के भेद देता है

चाहे तो शब्द से

चाहे तो दृष्टि से

चाहे तो हाथ के इंगित से पुकार लेता है

सभा में सत्य को उतार देता है

चाँदनी में बैठे ग्रामीण अलाव तापते हुए सुनते हैं उसे

अलावों के चहुँओर दिपदिप चेहरों पर

रह-रह खेलती है आदिम मुस्कान

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रभात
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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