गुर्जरी तोड़ी
यह राग हमें बताता है
कि हम अभी भी विश्वास कर सकते हैं
रिश्तों के डोर से बँधी इस दुनिया पर
नाउम्मीदी को बुहार कर फेंक सकते हैं घर के बाहर
सूर्य के काम पर जाने से पहले तारे
जिस तरह आसमान बुहार कर साफ़ करते हैं
और आकाशगंगाएँ सजाती हैं नक्षत्रों का तोरण
इस राग के समय में हमारे
दुःखों के ढेरों प्रहर बीतते हैं
सुनहरी और लाल रंग में रँगी हुई
सूर्यादय की उज्ज्वल इबारत की तरह
दुःख हर नई लय के साथ
थोड़ा गाढ़ा होता जाता है
थोड़ा ज़्यादा सुनहरा
श्रीमंतों, गुणीजनों और रसिकों के दायरे से अलग
अपनी छोटी कामना का सपना पाले हुई
एक हतप्रभ चिड़िया भी इसके सुरों को पहचानती है
और फूलों से रंग लेकर इसमें भरती है
इस राग का निर्मल पानी बचाता रहता है
हमेशा प्यास में दर-ब-दर भटकने से हमें
अनिश्चय की अंतहीन बावड़ी की ओर
जाने से रोकती है इसकी अति कोमल आवाज़
यह हमारे अपनों के बीच का राग है
चिड़ियों की वत्सल लय से भरा
और एक स्त्री की करुण पुकार से गूँजता हुआ
शताब्दियों पहले प्रेम में धोखा हुआ था जिसे
और जो चली गई थी जंगलों तक पैदल
आरोह-अवरोह की सीढ़ियाँ लाँघ कर
प्रेम में पागल अपने हिस्से का दुःख बटोरने
राग गुर्जरी तोड़ी से बात करो
तब जाकर पता लगता है
प्रेम के वैभव का बखान करने वाले
इस राग के घराने में
बहादुरी विलासख़ानी सहेली और मियाँ की तोड़ी
पहले से ही मौजूद हैं
और अपने-अपने ढंग से धुलने में लगी हैं
हमारे दुःखों की मैली चादर को
वे जानती हैं हमारी असफल प्रेम-कथाओं के ब्यौरे
और हमसे अनजाने ही छूट गए आत्मीय जनों के पते
दिन के सहज स्थापत्य में
इस राग का होना हमें बताता है
दिन का आरंभ ही जीवन का आरंभ है
नए सिरे से शुरू की जा सकती है यह दुनिया
एक बार फिर हमारे गाढ़े सुनहरे दुःख की तरह
दिनारंभ प्रेम के साथ हो सकता है।
- रचनाकार : यतींद्र मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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