रात का संगीत
एक ठहरी हुई शाम
जाने कब से पूछ रही है
अपना पता
एक गुमनाम आदमी देर तक
चलता है सड़कों पर
उसे उम्मीद है भविष्य का नक़्शा
वह ढूँढ़ लेगा
देर से टँगी है पत्ती
हवा की प्रतीक्षा में
एक औरत कपडे सुखा रही है
एक घर में दिया जल रहा है
एक छत पर बारिश हो रही है
एक आदमी तेज़ आवाज़ में लड़ रहा है
एक घर से बच्चों के रोने की आवाज़ आ रही है
एक घर से कोई आवाज़ नहीं आ रही है
थकान के बाद सुन्न
पड़ रही हैं स्मृतियाँ
दिनों और महीनों के कंधों पर
घंटों का बोझ है
एक तिलिस्म की तरह लगती है
ये दुनिया
वे सोचते हैं
और ठहर जाते है
वे उस गाय को देखते हैं
जो चलते-चलते ठहर गई है
कोई नहीं बता सकता
वह कितनी देर यूँ ही खड़ी रहेगी
पैरों की उदासी को सिर्फ़
घोड़े जानते हैं
कोई उनकी हथेलियों पर
नाल ठोंक रहा है
वे उन्हीं मैदानों से गुज़रे
जहाँ पिछली सदी में गुज़रे थे घोड़े
वे घोड़ों की तरह कभी
कामयाब नहीं हो सके
अब वे घोड़ो की तरह रोना चाहते हैं
एक दुनिया रात में बदल रही है
एक बच्चा ज़मीन का एक महफ़ूज़ कोना तलाश रहा है
एक फ़ुटपाथ के बराबर में पुलिस की गाड़ियाँ दौड़ रही हैं
कुछ लोग अदृश्य हो जाना चाहते हैं
कुछ लोग अपने हाथ काट लेना चाहते हैं
कुछ लोग पैर काट लेना चाहते हैं
कुछ लोग कुछ भी खाकर सो जाना चाहते हैं
कुछ लोग सुन्न हो जाना चाहते हैं
कुछ दुनिया के सारे बल्ब फोड़ देना चाहते हैं
कुछ लोग मिट्टी में लिथड रहे हैं
कुछ लोग इतनी ज़ोर से चीख़ना चाहते हैं
कि दुनिया चाँद के दो टुकड़ों में बदल जाए
एक आदमी हवा में करुणा पैदा कर रहा है
एक आदमी कभी न चुप होने वाली रुलाई रो रहा है
एक आदमी हर पत्ते को खा रहा है
एक आदमी कुछ भी नहीं खा रहा
एक स्त्री अपने प्रेमी से सचमुच का रूठ जाना चाहती है
ढाबे के बाहर खड़ा एक आदमी चाहता है
कि दुनिया में एक भयानक विस्फोट हो
सभ्यता के मुहाने पर
खड़े कुछ लोग
ठिठके हुए हैं
वे समय के किनारों से फिसलते
कोलंबस की तरह किधर निकल जाएँगे
कोई नहीं बता सकता
कोई नहीं बता सकता
रात का यह संगीत कितनी देर और चलेगा
किस क्षण घास की सबसे नन्हीं पत्ती पर
ओस की बूँद आकर ठहर जाएगी
- रचनाकार : अच्युतानंद मिश्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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