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मुंशी शैलें की चिट्ठी

munshi shailen ki chitthi

अनुवाद : चक्रेश्वर भट्टाचार्य

महेंद्र बरा

महेंद्र बरा

मुंशी शैलें की चिट्ठी

महेंद्र बरा

और अधिकमहेंद्र बरा

    उसकी वांछित चिट्ठी नहीं आई। आज भी नहीं।

    बाहर रिमझिम वर्षा...

    शनीचर की प्यारी शाम

    एक चिट्ठी होती तो कितना सुंदर होता।

    नीले लिफ़ाफ़े की एक चिट्ठी कंपित हाथों से खुली थी

    दिल में धड़कन, कितनी आशा की चिट्ठी यह—

    ‘बरुवा, आप अगर आपके बीस रुपए इस महीने में ही...'

    जी इतना ऊब जाता है, आज की शाम इतनी कड़वी है।

    कल तो इतवार, तो भी काश पोस्टमैन आता।

    पावर-हाउस की घरघराहट, टेलीफ़ोन की रिंग-रिंग, परदेशी बोली की बातें

    स्टेशन मास्टर की विकट चिल्लाहट, ‘फोर-डाऊन, नाइन-अप’,

    उसके कानों में मिस इस्तिया के गीतों की गुंजन

    अगर फ़ोन की दूसरी तरफ़ से दो-एक शब्दों का भी

    भास कर आती, और हँसी शेष लहरों के दो-एक टुकड़े।

    मुंशी की आँखों में भी इतना स्वप्न? हँसी नहीं आती क्या?

    कल भी नहीं आई। यह मुकुल की चिट्ठी।

    वह चिट्ठी अंदर रखने के लिए भूल गए। ख़ाली लिफ़ाफ़ा आया

    उसके ऊपर उसके रावीन्द्रिक हाथ से लिखी हुई

    एक हरफ़ के ऊपर दूसरे हरफ़ की भीड़।

    शायद यह चिट्ठी अतृप्त मन की, उदास मुहूर्त की है।

    उसके बदले में अगर उसके वांछित स्थानों से चिट्ठी आती तो।

    सोते-सोते थक जाकर चिट्ठी लिखने के अनुकूल

    मन को तैयार करने के लिए अगर कल की रात और कुछ लंबी होती तो।

    इस दिसम्बर की रातें इतनी छोटी हैं, बुरा लगता है।

    शायद उसको वक़्त नहीं मिलता। वक़्त नहीं। एक टुकड़ा सफ़ेद काग़ज़ में

    अगर उसके हल्के होंठ का थोड़ा-सा चुंबन का दाग भी आता...

    उसका राशन कार्ड, पे स्केल की ज़िंदगी, एक ट्रैजडी

    सुनहरे स्वप्न चूर्ण हो जाते हैं, रेल के इंजन के घर्षण से नहीं,

    फ़ाइलों के पेषण से (बालू के साथ मिली हुई सोवनसिरी की

    स्वर्ण-कणा धूप में नहीं जलती, जलता है अभ्रक)?

    कहानी के बैलेश्लव की तरह क्या आप ही अपने नाम पर चिट्ठी दें?

    शायद बुरा नहीं होगा। उसकी सोई हुई आँखों के

    किनारे में अलस-स्वप्न जगता है।

    स्वप्न देख-देखकर तुम सोते रहो मुंशी कवि।

    एक सदी के बाद

    तुम्हारी क़ब्र के ऊपर पोस्टमैन चिट्ठी रख जाएगा। चिट्ठी ज़रूर आएगी,

    प्यारे शैले! उपकूल की छाया-माया चित्र क्या हमारा है?

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1953 (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : महेंद्र बरा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1956

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