मुझे इतना उदार मन नहीं चाहिए
mujhe itna udar man nahin chahiye
जिस प्रेमी ने जाते हुए कहा तुम्हें वेश्या
उसे कहना चाहिए धन्यवाद
आगे बढ़कर पड़ जाना चाहिए
नए प्रेम में नए प्रेमी के साथ
धता बताना चाहिए आसमानी शुचितावाद को
जो तुम्हारे हिलोर भरते समुद्र को
एक पोखर समझता
रेत किनारे बिच्छू-सा रेंगता रहा
दंश के अभिमान से होता रहा भारी उसका गर्वित डंक
उस सूर्य की ओर खुलने वाली खिड़की को बंद कर दो
जो तुम्हारे पानी को सोखने के लिए उतर आया ज़मीन पर एक दिन
तुम्हें बता कर गया चखकर तुम्हारी देह
कि इतना नमक है इसमें
जिससे संसार के सब अन्न का भंडार पकाया जा सकता है
एक अधीर प्रेमी के कामुक संस्करण से गुज़र जाने के बाद
स्वादिष्ट हुई है जितनी यह देह।
पानी में छवि देखकर तो बताओ।
वही पुरानी नगरवधू की रीति।
फूलों से इस मंडप को सजाओ।
कोई ऋतु हो, बसंत के गीत लिखो और गाओ।
झूमो और पुनः लजाओ
आम्रपाली की कथा बाँचो परिव्राजक!
और अब कहो
कि तुम्हारे डर को मिट जाना चाहिए।
उस गलफंद को कहूँ मैं धन्यवाद?
मुझे इतना उदार मन भी नहीं चाहिए।
आषाढ़ में मुझे बसंत-गीत क्यों गाने चाहिए
होना तो यूँ चाहिए कि वर्तमान को निर्लिप्त
और भविष्य को स्वार्थी हो जाना चाहिए
समझ आना चाहिए कि
जो भी बीता वह आखेट था।
और आखेटक को कैसा धन्यवाद!
- रचनाकार : प्रिया वर्मा
- प्रकाशन : समकालीन जनमत
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