मोहिनी! अनुराग के गोते मैं खा रहा हूँ।
mohiani! anurag ke gote main kha raha hoon.
उद्भव सिंह शांडिल्य
Udbhaw Singh Shandilya
मोहिनी! अनुराग के गोते मैं खा रहा हूँ।
mohiani! anurag ke gote main kha raha hoon.
Udbhaw Singh Shandilya
उद्भव सिंह शांडिल्य
और अधिकउद्भव सिंह शांडिल्य
प्रकृति का सौंदर्यबोध है
जीवन का उच्च प्रबोध है
समन्वय का दर्शन देखो
अध्ययन व समर्पण देखो
घने-घुँघराले केश तुम्हारे
ख़ुद को हम कैसे संभालें
प्रेम के महासागर में मैं, देखो उतरा रहा हूँ
मोहिनी! अनुराग के गोते मैं खा रहा हूँ।
- रचनाकार : उद्भव सिंह शांडिल्य
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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