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मिसिर जी की बहू का बयान

misir ji ki bahu ka byan

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

मिसिर जी की बहू का बयान

ऋतेश कुमार

और अधिकऋतेश कुमार

    गाँव के रेलवे लाइन पर जो औरतें कट मरीं

    चुड़ैल बनी

    वे रात में भटकती हैं सूने स्थानों पर

    चिता पर पति के जली या जलाई गई होंगी जो

    देवी बनी

    वे पतिव्रताओं को देती हैं आशीष

    बुढ़वा पोखरा के पास बना है उनका मंदिर

    कुछ औरतें (जिन्होंने मरने से किया होगा इनकार)

    डायन बनीं

    वो बीमार कर देती हैं सुंदर बच्चों को

    प्राण हर लेती हैं

    मेरे बाबा के भी बाबा के ज़माने में

    किसी डायन ने मारा था बान

    फुआ मर गई थीं अकाल

    साँप ने काटा था

    वह मरकर साँप बनीं

    किसी कन्या के साँप बनने की यह

    पहली कथा सुनी थी मैंने

    मरते हुए फुआ ने कहा था

    हम होएम बिला जाएम

    दोसर होई मरा जाई

    शादी-ब्याह के मौक़े पर

    वह ज़रूर से आती हैं अब भी

    ऐसा घर के लोग कहते हैं

    सोचता हूँ

    एक स्त्री के बान से मारी गई

    एक लड़की कथा में

    इसीलिए तो नहीं बनी साँप

    कि हमें उन्हें ज़मीन पर रेंगते देखना अच्छा लगता है

    जबकि अकाल मरने वाले लड़के बढ़म बन जाते हैं

    कल ज़हर खा लिया मिसिर जी की बहू ने

    रातों रात जला दी गई लाश

    ख़बर मिलते ही गाँव की इज़्ज़त बचाने में

    जुट गया था पूरा गाँव

    वही गाँव जो बनाता है डायन, चुड़ैल, सती और साँप

    मिसिर जी की बहू मरते समय क्या कह रही होगी

    मिसिर जी की बहू क्या बनेगी

    क्या वह मुझे दिखेगी सूनी जगह पर कहीं

    क्या वह देगी मुझे अपना बयान

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतेश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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