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मेंढ़ पर जीवन

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आनंद बलराम

आनंद बलराम

मेंढ़ पर जीवन

आनंद बलराम

और अधिकआनंद बलराम

    दूर तक फैला मैदान

    मैदान में बिस्कुट जैसे खेत कितने सुंदर लगते हैं

    वहीं पगड़ी पहने बिजूका

    मनुष्य का प्रतिनिधि है

    हाथ में लट्ठ टिकाए

    वह कितना सुंदर लगता है

    अगर यह सब सुंदर लगता है

    तो यह सौंदर्य की सबसे सीमित दृष्टि है

    ये खेत हमने अपने लिए बनाए हैं

    ये खेत सुंदर सहज संसार की क़ीमत पर बने हैं

    ये खेत अगर पेट की नाप तक रहते

    और पेट की नाप भी होती सीमित

    तब भी ठीक थे

    लेकिन अब ये मेरे लिए कारख़ानों की तरह हैं

    जिनमें ज़हर के ट्रक उगाकर मंडियों तक पहुँचाये जाते हैं

    ज़हर की होड़ में

    हमने इतना छीला-छाँटा है पृथ्वी को

    कि बँटवारे का यह खेल

    ख़तरनाक मोड़ तक गया है

    इंसानी अखाड़े से बाहर का संसार

    सिर्फ़ मेंढ़ तक सिमट गया है

    अब अपनी मर्ज़ी से उगना चाहे कोई पेड़

    तो यही मेंढ़ शेष है

    अब मर्ज़ी से खिलना चाहे कोई फूल

    तो यही जगह शेष है

    यहीं शाख पर झूलती सकती हैं मधुमक्खियाँ

    यहीं कोई खातीचिड़ा तिनके जोड़ता है

    यहीं दीमोले में जनती है घो अपने बच्चे

    यहीं कोई सर्प लंबी निद्रा में लीन रह सकता है

    अब यही इनकी सृष्टि है

    यही इनका ब्रह्मांड

    लेकिन वर्ष में आते हैं फिर ऐसे भी महीने

    जब दूर आकाश में बादल देखकर उठते हैं ज़मींदार

    गरजते ट्रैक्टर लिए खेतों में पहुँचते हैं

    सींक जोड़कर पहले सुलगाते हैं अपने होंठ

    वही सींक लाँफ के कोने में टिका देते हैं

    दूर तक धूँ-धूँ फैल जाती हैं अग्नि-रेखाएँ

    दूर तक आकाश में बादलों से धुआँ जा मिलता है

    लपटें चढ़ती हैं पेड़ की टुगली तक

    लपटें मेंढ़ पकड़कर आगे बढ़ती हैं

    वे धरती के पेट में दुबके जीवन तक नीचे उतर जाती हैं

    जो सृष्टि सिर्फ़ मेंढ़ तक बची थी,

    हाहाकार मच जाता है

    सामूहिक संहार का रुदन होता है

    रुदन की इस भाषा से अनभिज्ञ

    हम अपनी सृष्टि में लौट आते हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : आनंद बलराम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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