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मज़दूर

mazdur

मीना प्रजापति

और अधिकमीना प्रजापति

    खींचता है वह नाड़ियों से रक्त

    जो पसीजता है उसके शरीर से

    जैसे पीरते हैं जूस को

    वैसे पीरता है पेट उसे

    चिल-चिलाती धूप में

    कराहती हैं उसकी अंतड़ियाँ

    भभकती तारकोल से

    भभकता है उसका

    आमाशय

    सूरज के साथ उठता है

    छिप जाते ही, छिप जाता है।

    चौबीस तीलियों में तिलता है वह हर रोज़

    मज़दूर अब मज़बूर हो गया है

    चेहरे पर झुर्रियाँ

    सिर पर गमछा

    पैर रिक्शे के पैडल पर

    खींचता जा रहा है

    रस से भरी मौसमी की बोरियाँ

    या घर की ज़रूरतें!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीना प्रजापति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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