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मऊगहर लड़के

maughar laDke

मनीष यादव

मनीष यादव

मऊगहर लड़के

मनीष यादव

और अधिकमनीष यादव

    गाँव में नब्बे के दशक की एक कहावत है

    जोरू के ग़ुलाम बनने से पहले

    घोड़े के जैसे उसकी लगाम कस दो।

    मैं पूछता हूँ—पर क्यों?

    पितृसत्ता के पाँव की छाप

    देर-सबेर पुरुषों तक भी पहुँची है

    वे पुरुष

    जिन्होंने लगाए अपनी पत्नी के हाथों में मेंहदी,

    वे पुरुष

    जिन्होंने किसी रोज़ सुबह बनाई चाय!

    वे पुरुष

    जिन्होंने कभी भी नहीं लगाया अपनी पत्नी को थप्पड़,

    वे पुरुष

    जिन्होंने चुना हर रोज पत्नी के साथ बाज़ार जाना,

    वे पुरुष

    जिन्होंने नहीं विलीन होने दिए अपनी नायिका के स्वप्न!

    वे पुरुष

    जिन्होंने क्षणिक कुंठित अभिमान को समाप्त करने के लिए

    रौंद दिए पितृसत्ता के रखवालों के पाँव...

    उस वर्तमान समाज ने उन्हें दी

    मऊगहर लड़के की संज्ञा!

    और सोचा इससे छिन जाएगा उनका पुरुषत्व।

    अगर बचा है उन पुरुषों का अस्तित्व

    तो मुझे इतना विश्वास है कि

    वे होंगे इस समय दुनिया के सबसे संवेदनशील पिता

    दी होगी उन्होंने अपने बच्चों को पहली शिक्षा

    कि—

    किसी स्त्री को प्रेम देने से पूर्व उसे इज़्ज़त देनी चाहिए।

    हे पुरुष!

    मैं अंतत: तुमसे क्षमा चाहता हूँ

    और कहना चाहता हूँ कि—

    किसी रोज़ बेपरवाह होकर

    चूम लो सबके समक्ष अपनी स्त्री के पाँव

    जैसे चूम लेती है आषाढ़ की पहली बारिश

    मेरे गाँव की मिट्टी॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीष यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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