मरुस्थल के अधरों पर मुस्कान
marusthal ke adhron par muskan
जानकी बल्लभ पटनायक
Janaki Ballabh Patnaik
मरुस्थल के अधरों पर मुस्कान
marusthal ke adhron par muskan
Janaki Ballabh Patnaik
जानकी बल्लभ पटनायक
और अधिकजानकी बल्लभ पटनायक
कहानी नहीं, नहीं है कविता यह
रूपकथा की राजबाला की
गजदंत के मधु पलंग की सेज पर
जो भोगती है बिरह की ज्वाला।
मरुस्थल के अधरों पर जो खिलाती है मुस्कान
बहाकर ख़ून पसीना अपना
माटी को लाती है जो हरे वेश में
यह कविता है उसके जीवन की।
- पुस्तक : सिंधु उपत्यका (पृष्ठ 65)
- रचनाकार : जानकी बल्लभ पटनायक
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
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