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3 मई 1986 के लिए

3 mai 1986 ke liye

नेमिचंद्र जैन

नेमिचंद्र जैन

3 मई 1986 के लिए

नेमिचंद्र जैन

और अधिकनेमिचंद्र जैन

     

    विवाह की पचासवीं वर्षगाँठ पर 

    जब शुरू हुई यह यात्रा
    झुटपुटे में
    हाथ पकड़े हुए
    तो पीछे था अँधेरा
    स्याह पर तारों से जगमगाता
    सामने धुँधलका,
    ताँबई लाल लकीरों से भरा
    बुलाता हुआ

    अबूझ आकर्षण से चलते रहे हम
    ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर
    टकराते
    गिरते-पड़ते
    कभी लहू-लुहान
    कभी ओस में नहाए हुए
    भटकते रहे
    सार्थकता की तलाश में
    अपनी-अपनी
    और साझी
    जो कभी मिली या मिलती हुई जान पड़ी
    और कभी दूर—
    कितने घरौंदे बनाए बिगाड़े
    अपरिचित बियाबानों
    या हरे-भरे मैदानों में
    खेमे गाड़े-उखाड़े
    कभी प्रेम किया कभी विद्रोह
    कभी क्रोध कभी ममता कभी घृणा कभी मोह

    एक साथ और अलग-अलग रचा, तोड़ा
    फिर रचने का स्वप्न देखा
    बहुत-कुछ खो गया
    थोड़ा-बहुत बचा
    वह भी कभी सहेज कर रक्खा कभी छोड़ा

    रक्त में कोई अनाम बेचैनी उफनती रही
    उकसाती रही
    बदलने के लिए
    ख़ुद को यानी दोनों को
    बल्कि हर चीज़ को
    शायद कुछ बदला
    शायद नहीं भी बदला
    या सभी कुछ बदल-बदलकर भी
    वही बना रहा
    जीवन इसी उधेड़बुन में तना रहा

    और अब अमलतास और गुलमोहर और झुलसाती लू के
    पचास मौसमों के बाद
    पीछे धुँधलका है
    टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों से भरा
    कुछ रंगीन 
    और कुछ कसौटी पर चमकती सुनहरी
    और सामने है अँधेरा स्याह
    समुद्र की तरह अथाह बेपनाह

    कुछ दूर और 
    हम हाथ पकड़े चलेंगे
    फिर अलग हो जाएँगी गुँथी हुई उँगलियाँ
    शायद मुड़ जाएँगी राहें
    गोद में छिपा लेंगी
    सूने आसमान की ममतामयी बाँहें।     

    स्रोत :
    • पुस्तक : अचानक हम फिर (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : नेमिचंद्र जैन
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1999

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