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मारियाना ट्रेंच का कारागृह

mariyana trench ka karagrih

प्रियंका दुबे

प्रियंका दुबे

मारियाना ट्रेंच का कारागृह

प्रियंका दुबे

हमारे बीच की ख़ाली जगह में

प्रेम बच पाया था, मित्रता।

तुम्हारी याद में इतना रोती थी मैं

कि फिर उसी याद के गुरुत्वाकर्षण से दूर जाने के लिए

प्रशांत महासागर की गहराई में ग़ोते लगाने लगी।

वहाँ, मारियाना ट्रेंच की ओर तैरते हुए सोचती…

कि पृथ्वी के इस सबसे गहरे बिंदु के तल पर भी क्या

ग्रैविटी और नीचे खिंचेंगी मुझे?

और, और नीचे?

तुमने कहा था कि

पृथ्वी के गर्भ में ग्रैविटी शून्य हो जाती है।

बस, यही इक बात रटते-रटते नीचे उतरती गई थी…

यहाँ समंदर के तल में सूरज की रौशनी भी नहीं आती।

लेकिन तुम्हारी याद का गुरुत्वाकर्षण तो

यहाँ भी त्रास देता रहा है मुझे।

कितने ही सालों

समंदर की अँधेरी कोख में बैठी यही सोचती रही...

कि यह ज़रूर मेरे गहरे प्यार के दुखों का ही दोष होगा

जिसमें पृथ्वी के सीने पर मारियाना ट्रेंच जितना गहरा घाव कर दिया।

वरना, क्यों डुबोती पृथ्वी ख़ुद को तीन-चौथाई पानी में?

क्यों देती प्रशांत महासागर को जन्म?

पृथ्वी पर फैला सारा पानी प्रेम का दुख ही तो है!

शायद इसलिए तो,

मारियाना ट्रेंच के इस गहरे अँधेरे तल में भी

प्रेम की पीड़ा ग्रैविटी की तरह

मुझे खींचते रहने से बाज़ नहीं आती।

लेकिन मेरा अर्जित प्रारब्ध तो यह होना ही था…

अपनी नाभि को पृथ्वी की नाभि में मिलाते हुए,

तुम्हें इतनी गहराई से प्रेम जो किया था मैंने…

इसलिए तो, प्रेम में वापसी के लिए भी

पीड़ा का उतना ही गहरा मार्ग चुनना पड़ा है।

और अब

पीड़ा के इस एकाकी अंतःतल में

प्रेम करने की यातना से बँधी पड़ी हूँ।

यह सारा समंदर मेरा कारागृह है।

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रियंका दुबे
  • प्रकाशन : समालोचन

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