दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के एक प्रांत में
जहाँ सबसे ज़्यादा आबादी बसती है
उसी प्रांत की तहसील एक छोटी-सी मनकापुर
मुलायम सर्द हवाओं, हरी-हरी घासों और
चीनी मिलों की ख़ुशबू से लबरेज मनकापुर
सागौन की हरीतिमा में डूबा सुंदर मनकापुर
मेरा घर मनकापुर और ससुराल भी मनकापुर
झिलाही बाज़ार जितना ही पुराना मनकापुर
मेरे सामने बनी थी यह नई तहसील
पहले पुरानी तहसील उतरौला लगती थी
और कचहरी के लिए लोग पचास किलोमीटर उत्तर तक जाते थे
पैदल या साइकिल से खसरा, खेतौनी और बैनामा ठीक कराने
या फिर अमलदरामत के लिए
मनकापुर उत्तर प्रदेश का पहला पूर्ण साक्षर क़स्बा
टेलीफ़ोन का एक कारख़ाना लगने के कारण
इस क़स्बे ने जवानी के दिन भी देखे थे कभी
आस-पास के गाँवों और गाँववासियों में
हल्के-फुल्के रोज़गार की एक लहर दौड़ी थी
कोई दूध बेचने जाता था तो कोई दिहाड़ी पर मजूरी करने आई.टी.आई.
लेकिन डूब गई आई.टी.आई. फ़ैक्टरी
पाँचवें वेतन आयोग के बाद लागू ही नहीं हो पाया
कोई अगला वेतन आयोग आई.टी.आई. में
लोग कहते हैं कि जब श्रवण कुमार
अपने माता-पिता को काँवर में लेकर
मनकापुर से गुज़र रहे थे
तो उन्हें एहसास हुआ कि यह क्या कर रहा हूँ मैं!
व्यर्थ कर रहा हूँ अपनी जवानी इन बूढ़ों के चक्कर में
लोग जवानी में क्या-क्या मौज करते हैं
और मैं मूरख ठहरा, ढोता माँ-बाप को...
इसी कशमकश में श्रवण को मिला कोई ऋषि एक
ऋषि ने कहा कि तुम ठीक सोच रहे हो श्रवण!
पर मेरी एक विनती मानो
कि मनकापुर और गोंडा का इलाक़ा पार करने के
बाद ही कोई क़दम उठाना
उससे पहले काँवर काँधे से मत हटाना
फिर जब श्रवण ने यह इलाक़ा पार कर लिया
तो उन्हें बहुत गहरा अपराधबोध हुआ
कि हाय! ये क्या सोच रहा था मैं!
मेरी बुद्धि इतनी भ्रष्ट कैसे हो गई थी
तब ऋषि ने खोला राज़
कि यह इलाक़ा ही शापग्रस्त है
यहाँ आकर बड़े-बड़ों की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है
आज भी लोग इस किंवदंती को उसी तरह कहते मनकापुर में
जैसे गया में गया के लोग कहते हैं
कि सीता के श्राप से ग्रस्त है गया
नदी होगी, पानी नहीं होगा
पहाड़ होंगे, पेड़ नहीं होगा
आदमी होंगे, दिमाग़ नहीं होगा
ऐसी कई किंवदंतियों में छाया है मनकापुर
जैसे यहीं बिल्कुल बग़ल के वराह क्षेत्र में ही
महाकवि तुलसी का जन्म हुआ था,
राम यहाँ गाय चराने आते थे।
आज की बात नहीं,
बहुत पहले की है, जब जंक्शन होना
किसी रेलवे स्टेशन की शान समझी जाती थी
तब भी मनकापुर रेलवे स्टेशन एक जंक्शन ही होता था
गुजरती यहाँ से अवध-आसाम एक्सप्रेस और मनकापुर-कटरा पैसेंजर ट्रेन
एक छोटी लाइन कटकर यहाँ से अयोध्या जाती थी
सरयू नदी पर पुल नहीं था रेल का तब
लोग इसी जंक्शन से चौदह-कोसी परिक्रमा के लिए जाते
और सरयू की रेत में पले-बढ़े
बड़े-बड़े तरबूजों को सिर पर रख लाते
पूरा परिवार बैठता एक साथ हिनोना खाने
सौ साल पहले से ही कुछ ऐसा रहा
कि मौसमी खेती के ख़ाली अंतराल में
जब गाँव के गाँव ग़रीबी और अभावों से भर जाते
तो बहुत सारे लोग एक साथ
लुधियाना, जालंधर और अमृतसर जाते कमाने
मनकापुर जंक्शन से ट्रेन पकड़कर
वहाँ कपड़ों के कारख़ानों में काम करते खट-खटकर
कुछ मुंबई और सूरत जाते साड़ियों का काम करने
कि लौटते समय कुछ पैसे होंगे जेब में
तो खेती-बाड़ी में लगाएँगे
कमाकर लौटते समय ये लोग ऐसी बहुत सारी चीज़ें लाते
जो मनकापुर में क़तई नहीं मिला करती थीं
तब भी मनकापुर ऐसा ही हुआ करता था,
बेहद ख़राब सड़कें लेकिन बहुत चमचमाती कारें
बेहद कमज़ोर इरादे लेकिन बहुत बड़ी-बड़ी बातें
आस-पास के तीस किलोमीटर की परिधि में आने वाले
सारे ही गाँवों के लिए ज़रूरत के सारे सामान का एक मुकम्मल बाज़ार
कुछ इंटर कॉलेज, कुछ पब्लिक स्कूल, कुछ बाग़-बग़ीचे
और नदी एक मनवर
मनकापुर जंक्शन का कुछ कायाकल्प हुआ
लेकिन
समय बदल नहीं पाया मनकापुर को
बस मनवर नदी में पानी ज़रूर कम हुआ कुछ।
- रचनाकार : प्रांजल धर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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