आज़ाद पंछी परवाज़ पर

azad panchhi parwaz par

लनचेनबा मीतै

लनचेनबा मीतै

आज़ाद पंछी परवाज़ पर

लनचेनबा मीतै

और अधिकलनचेनबा मीतै

    प्रारंभ करते ही स्वातंत्र्य-जागरण गीत

    जकड़ डाले साहस भरे फैले तुम्हारे हाथ-पाँव

    मनुष्य द्वारा मनुष्य के ही दमन हेतु निर्मित

    मैली-घिसी रूढ़ि की बेड़ियों में—

    मल्ल-योद्धा सा कोई ग्राम्य-युवा

    सूर्यावसान के निकट

    कसकर बाँधता जैसे लकड़ियों का गट्ठर

    हड़बड़ाते हुए

    लेकिन उड़ान भर ली प्राणों ने तुम्हारे

    दोनों परों को अनथक

    फड़फड़ाते हुए स्वतंत्रतापूर्वक

    बंधन का अवसर दिए बिना

    आज़ादी को हृदय में बसाए

    हज़ारों-हज़ार लोगों के

    शस्य-श्यामल-विराट्

    निस्सीम हृदय-खेतों में

    उतरते हो तुम जब भी दाना-चुगने

    भाग आते चारों ओर से

    मदमत्त प्रेम के आँसू

    धीरे-धीरे लघु तरंगों में

    तुम खेलते हो उन्हीं में

    पीढ़ी-दर-पीढ़ी

    खेल-कूद, डुबकी लगा

    फड़फड़ाते पंख

    कभी;

    नन्हें चमकीले बुलबुले

    फोड़ते नुकीली चोंच से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 5)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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