उसके मन के घर में
गूँजती रहती हैं
टूटती इच्छाओं की
मौन आवाज़ें
उसमें हर बालिश्त
दर्ज होती जाती है
छूटते जा रहे सपनों से
पलायन की एक लंबी फ़ेहरिस्त
क्षोभ के इस अतल सागर में
डूब जाने से, वह बचा लेना चाहती हैं
तैरने के लिए आतुर नई लड़कियों को
वह नहीं सौंपना चाहती उन्हें
पारंपरिक दाँव-पेंचों की गुच्छा भर सौग़ातें
आगाह करना चाहती है उन्हें
पाँव की हर चाप के आस-पास
उगे हर काँटेनुमा वृक्ष से
उनके शांत और मासूम चेहरों पर
मुस्कान सहेजकर
लगा देना चाहती है
हौसलों की मज़बूत साँकल
उनके मन के रिक्त कोनों को
भर देना चाहती है
अपनी बची हुई ऊष्मा से
निराशा से नम रातों की
उजली सुबहों में
उन्हें दिखाना चाहती है
शेफालिका के मुस्कुराते नरम फूल
कि जिन्हें वह बाँच सकें
मन के पारदर्शी रोशनदानों से
वह फूँकना चाहती है उनके कानों में
चेतना से भरा कोई मंत्र
हर शब्द के समीचीन
कि ख़ूबसूरती के मायावी भ्रम से निकलकर
गढ़ सकें सुंदर-असुंदर से परे की एक नूतन परिकल्पना
वह सीख सकें
प्रकृति की हर संरचना पर
धौल जमा सकने का कौशल
ग़ैरबराबरी से भरे इस लिजलिजे समाज में
पाट सकें लकीर
हाशिए पर खड़ी लड़कियों के लिए
दिला सकें स्त्रियों को उनके हिस्से का प्रेम
जो शताब्दियों से आँसुओं के रूप में
जमा है उनकी आँखों में...
- रचनाकार : शालिनी सिंह
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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