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मामूली मत समझो आम

mamuli mat samjho aam

रमेशदत्त दुबे

रमेशदत्त दुबे

मामूली मत समझो आम

रमेशदत्त दुबे

और अधिकरमेशदत्त दुबे

    बौराने लगा है आम

    पकने लगी है इमली

    मामूली मत समझो

    आम और इमली।

    जूड़ी-ताप से कड़ुआए मुँह का स्वाद

    बदलने ही वाला है

    अचार की एक फाँक

    परसने ही वाली है थाली में

    छप्पन व्यंजन

    गले में फँसा सूखी रोटी का कौर

    उतरने ही वाला है—पेट में।

    मामूली मत समझो

    आम और इमली।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हड्डियों से भी दूध उतर आता है (पृष्ठ 32)
    • रचनाकार : रमेशदत्त दुबे
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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