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मल्लाह

mallah

वीरेन डंगवाल

और अधिकवीरेन डंगवाल

     

    निराला और त्रिलोचन को   

    वैसे इन मल्लाहों में है भुजबल इतना
    एक डाँड़ में बीस हाथ गंगा की धारा
    कर जाते हैं पार, चट्ट कर जाते पूरी
    बोतल फिर भी पलक नहीं ये झपकाते हैं

    और अक्ल भी बड़ी तेज़ है सूँघ हवा को
    बतला सकते हैं बरसेगा कब पानी
    पैनी दृष्टि थाह लेती है पलक झपकते
    डगमग लहरों के नीचे सारी गहराई

    मगर ज़रा हालत तो इनके घर की देखो
    ख़स्ता टप्पर बच्चे नंग-धड़ंग भूखे
    कलह औरतों में दिन-रात मचती रहती है
    लट्ठ एक-दूसरे के सर, अक्सर बजते हैं

    पढ़ने-लिखने का तो ख़ैर कहा क्या जाए
    सुल्फ़ा-गाँजा दारू-कौड़ी यही शुगल है
    प्रतिभाशाली दम-ख़म वाले जो होते हैं
    चोर-चकारे रहजन-डाकू बन जाते हैं

    तैराकी में होते सब अलबत्ता माहिर
    हर जलचर के साथ घरजँवाई का नाता
    नदी खेत है उनका, नदी सड़क है उनकी
    वही कार्यशाला है, वही पाठशाला है

    अपना जीवन इनका पर ठहरा पानी है
    एक लहर भी नहीं जहाँ सच्चे हुलास की
    दुख ही दुख है काई-सा कीचड़-सा ग़ुस्सा
    भूख और अज्ञान किलबिलाते कीड़ों से

    धनी बात के यों होते मेहनत के पक्के
    कोई ले जाता इन तक भी सत जीवन का
    दुनिया का समाज का तो ये बड़े जुझारू
    साबित होते पर इनकी सुध नहीं किसी को

    वह इकलौती नाव दीखती जो इस पुल से
    संध्या के उड़ते रंगों की पृष्ठभूमि पर
    ठिठकी-ठिठकी आकर्षण से भरी उदासी
    घर जाने की हूक जगाती सूने मन में

    उस पर भी अपने घर लौट रहा है एक मल्लाह
    चिंताओं से व्यग्र एक थका हुआ आदमी

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 43)
    • रचनाकार : वीरेन डंगवाल
    • प्रकाशन : नवारुण
    • संस्करण : 2018

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