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मक्खी

makkhi

महेश आलोक

महेश आलोक

मक्खी

महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    एक मक्खी लगातार मुझे परेशान कर रही है

    अगर वह मेरी नाक पर रह-रहकर बैठती है और उसके बैठने से

    मुझे चोट लगने जैसा अनुभव नहीं होता

    तो इसका यह आशय तो क़तई नहीं है कि मैं उसके बैठने से

    प्रसन्न हो रहा हूँ

    मैं इस समय बहुत परेशान हूँ

    उसे थप्पड़ मार नहीं सकता

    क्योंकि वह मेरे नाख़ून की लंबाई के आधे से थोड़ी कम लंबी है

    वह सिर्फ़ हवा से

    वह भी हाथ को तेज़ी से एक तरफ़ घुमाने से जितनी हवा

    आसन्न संकट की तरह उसके पंख को स्पर्श करती है

    उससे उड़ जाती है

    आप यक़ीन करें

    कई बार मेरे दोनों हाथ जब किसी काम में व्यस्त होते हैं

    मसलन आटा गूँथते वक़्त

    उस समय तो यही इच्छा होती है कि किसी से कहूँ

    उसे गोली मार दे

    फिर सकपकाकर अपनी मूर्खता को

    थोड़ा इधर-उधर गर्दन हिलाकर मक्खी को उड़ाने की कोशिश में

    पी जाता हूँ

    मैं सचमुच बहुत परेशान हूँ और चूँकि परेशान हूँ

    इसलिए यह राज़ की बात आप भी जान लें

    तो अच्छा है

    कि हर रोज़ की तरह आज भी मैं सपने में देखूँगा

    कि वही मक्खी मेरी आत्मा की नाक पर बैठी है

    और आत्मा बिल्कुल परेशान नहीं है

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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