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पितृ-ऋण

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अनुवाद : केदार कानन

राजकमल चौधरी

और अधिकराजकमल चौधरी

    मेरे पिता थे एक सार्थक शब्द

    मैं शब्दों की सार्थकता को

    अविश्वसनीय कहता हूँ

    मेरे पिता रहते थे मूल्य में

    अभिव्यक्ति में, नीति में

    अर्थवत्ता में

    मैं व्यक्तित्व की मात्र निरर्थकता में

    जीवित रहता हूँ

    पितृ-ऋण से मुक्त होने का

    दूसरा कोई उपाय

    मेरे पास नहीं है

    कभी नहीं होगा

    कभी नहीं होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिली कविताएँ (पृष्ठ 16)
    • संपादक : ज्ञानरंजन, कमलाप्रसाद
    • रचनाकार : राजकमल चौधरी
    • प्रकाशन : पहल प्रकाशन

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