मैंने रामानंद को नहीं देखा
mainne ramanand ko nahin dekha
अपने गुरु काशीनाथ सिंह के लिए
बिना कर्म के मिले न चेला, जग में एक अधेला
अपनी करनी गुरु पाएगा, अपनी करनी चेला
लोग वहाँ आएँगे साधो! जहाँ लगेगा मेला
जिसका सौदा अच्छा होगा, बेचेगा अलबेला
चित्त पर चढ़कर जिसकी कविता, बोले वही कबीर
क्या काशी, क्या मगहर साधो! जब मन हुआ फ़क़ीर।
कहकर गुरु ने ज्ञान की जड़ी दी
यानी खाने को रबड़ी दी
कंठी की जगह प्रीति की लड़ी दी
मोक्ष के लिए
प्रेम की हथकड़ी दी।
शिष्य गुरु के लिए
बिना धुएँ की आग ले आया
गुरु ने चेले को अपनी हेकड़ी दी।
चेला गुरु के लिए
चलनी में पानी ले आया
गुरु ने चेले का मन धोकर साफ़ कर दिया
और शिष्य के हाथ पर
रख दिए चारों फल।
चेला चौंका
गुरु ने गाया
प्रेम में पड़ोगे तो जानोगे
अपना सर्वस्व कैसे दिया जाता है
नहीं तो दुनिया में
जो भी लेना-देना है
सबका बहीखाता होता है।
शिष्य ने गुरु के लिए
आकाश में घर बनाया
गुरु ने चेले का मान की कुटी दी
मस्त रहने के लिए प्रेम की बूटी दी।
आँखें चार हुईं
गुरु ने उघार दिया
चेला ने दुलराया
फिर तो गुरु यार हो गए।
पहले गुरु, गुरु थे
प्रेम में सद्गुरु हो गए।
- पुस्तक : इतिहास में अभागे (पृष्ठ 16)
- रचनाकार : दिनेश कुशवाह
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2017
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