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मैं व्यस्त हूँ

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लीना मल्होत्रा राव

लीना मल्होत्रा राव

मैं व्यस्त हूँ

लीना मल्होत्रा राव

और अधिकलीना मल्होत्रा राव

    दिनचर्या के कई इतिहास रचती हूँ मैं

    खाना पकाती

    रोटी फुलाती

    परचून से सौदा लाती

    बस में दफ़्तर जाती

    क्या तुम जानते हो

    इन्हीं स्वाँगों के बीच

    फूलकर कुप्पा हुई एक रोटी रतजगा करती है

    प्रतीक्षा में अभ्यागत की

    घर का बुहारा हुआ सबसे सफ़ेदपोश कोना

    वसंत के रंग बचा लेता है पतझड़ में भी

    वह बस जिसमें मैं अकेली हूँ

    और तुम्हें

    उस जंगल से जिसका नक़्शा सिर्फ़ मेरे पास है

    निकालकर रख लिया है मैंने बग़ल वाली सीट पर

    बतियाने के लिए

    भूल आई हूँ मैं तुम्हें उसी बस में

    और मुझे नहीं मालूम कि उस बस का आख़िरी स्टॉप कौन-सा है

    देखे थे मैंने

    कल्पनाओं से बेदख़ल हुए वीतरागी पतझड़ के सूखे हुए पत्ते

    दूर तक उड़ते हुए उस बस का पीछा करते हुए

    विचित्रताओं से भरी हुई इस दुनिया में

    जब तुम्हारी खिड़की पर पौ फटती है

    और तुम सुबह की पहली चाय पीते हो

    तो अख़बार की कोई ख़बर पढ़कर तुम्हें ऐसा लगता है

    कि इस दुनिया में सब कुछ संभव है

    कि अचानक किसी मोड़ पर टकरा भी सकते हो

    तुम मुझसे

    क्या तुम ज़ोर से रिहर्सल करते हो

    अपने प्रश्न की

    कैसी हो तुम?

    क्या तुम जानते हो

    एक अरसे से बंदी हो तुम मेरे मन में

    और साँस लेने के लिए भी तुम्हें मेरी इजाज़त लेनी पड़ती है

    और जब कभी

    मुझे लगता है कि

    तुम इस घुटन में कहीं मर तो नहीं गए

    तो मैं घबरा कर अचकचा कर उठती हूँ

    तब मेरे बच्चे मुझे कितनी हैरत से देखते हैं

    अपने व्यस्ततम क्षणों में

    जब मैं दिनचर्या के कई इतिहास रचती हूँ

    कपड़े धोती हूँ

    इस्त्री करती हूँ

    बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती हूँ

    और वह सब उपक्रम करती हूँ

    जो हम तब करते हैं

    जब करने को कुछ नहीं होता

    जब आकाश का चितेरा पूरी मशक़्क़त करता है

    कि महाशून्य में डोलती यह धरती

    कहीं सरक जाए उसके आग़ोश से।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान (पृष्ठ 62)
    • रचनाकार : लीना मल्होत्रा राव
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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