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मैं आती हूँ तूफ़ान बन के

main aati hoon tufan ban ke

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

सदानंद रेगे

सदानंद  रेगे

मैं आती हूँ तूफ़ान बन के

सदानंद रेगे

और अधिकसदानंद रेगे

    मैं आती हूँ तूफ़ान बन के

    और सोचती हूँ :

    कि मेरे किनारों पर उभरे

    उसके पैरों के निशान

    पोंछ सकूँगी मैं,

    लेकिन वे पद-चिह्न वैसे ही रहते हैं

    मेरे किनारे की बालू को डँसी हुई।

    और फिर समझ में आता है

    कि ये चिह्न ऐसे ही रहेंगे,

    ऐसे ही दिखेंगे

    आख़िरी क्षण तक,

    मेरे सपनों के अंग काट खाते हुए

    क्योंकि

    मेरे ही आँसुओं से भींगी हुई रेत पर

    उभरे हैं उसके ज़ख़्म

    जो कोई तूफ़ान

    कभी पोंछ नहीं सकता

    कभी मिटा नहीं सकता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 229)
    • रचनाकार : सदानंद रेगे
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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