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मदन-दहन के बाद

madan dahan ke baad

रवींद्रनाथ टैगोर

रवींद्रनाथ टैगोर

मदन-दहन के बाद

रवींद्रनाथ टैगोर

और अधिकरवींद्रनाथ टैगोर

    पंचशर को भस्म करके, यह क्या किया है संन्यासी,

    सारे संसार में व्याप्त कर दिया उसे।

    उसकी वंदना व्याकुलतर होकर हवा में उच्छ्वसित हो रही है,

    उसके आँसू आकाश में बह रहे हैं।

    सारा संसार रति के विलाप-संगीत से भर उठा है,

    और समस्त दिशाएँ अपने-आप क्रंदन कर रही हैं।

    फागुन मास में जाने किसके इशारे पर

    धरती सिहरकर मूर्छित हो जाती है क्षग-भर में।

    आज इसीलिए समझ में नहीं आता कौन-सी यंत्रणा

    रोमांचित और ध्वनित हो रही है हृदय-वीणा में,

    तरुणी समझ नहीं पाती

    पृथ्वी और आकाश की सभी वस्तुएँ

    उसे एक स्वर में कौन-सा संदेश दे रही हैं।

    बकुल-तरु-पल्लवों में

    कौन-सी बात मर्मरित हो उठती

    भ्रमर क्या गुंजार रहा है।

    सूर्यमुखी उद्ग्रीव होकर

    किस प्रियतम का स्मरण कर रही है,

    निर्झरिणी कौन-सी प्यास लिए

    बहती चली जा रही है।

    चाँदनी के आलोक में यह चुनरिया किसकी है,

    नीरव नील गगन में ये किसके नयन हैं!

    किरणों के घूँघट में यह किसका मुख देखता हूँ,

    कोयल दूर्वा दल पर किसके चरण हैं!

    फूलों की सुगंध में किसका स्पर्श

    प्राण और मन को उल्लास से भरकर

    हदय को लता की तरह कस देता है—

    कामदेव को भस्म करके तुमने यह क्या किया हे संन्यासी,

    उसे सारे संसार में व्याप्त कर दिया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रवींद्रनाथ की कविताएँ (पृष्ठ 138)
    • रचनाकार : रवींद्रनाथ टैगोर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1967

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