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माँ मुझे चुप्पी लड़की कहती रही

maan mujhe chuppi laDki kahti rahi

यशस्वी पाठक

यशस्वी पाठक

माँ मुझे चुप्पी लड़की कहती रही

यशस्वी पाठक

और अधिकयशस्वी पाठक

    माँ मुझे चुप्पी लड़की कहती रही

    बहनें लड़ाका

    दोस्तों ने प्यारा कहा

    परिचितों ने भोली

    तुम्हारे साथ रहते मैंने जाना

    मैं एक भूखा भेड़िया हूँ

    जिसकी ग़िज़ा तुम्हारे पास है

    एक पागल कुत्ता हूँ

    जो किसी भी वक़्त तुम पर हमला कर सकता है

    दबाकर रखी गई चीख़ हूँ

    जो तुम्हें बावला कर सकती है

    धूल चाटता घायल शिकार

    मेरा मरहम तुम्हारे पास है

    किस प्रतिशोध में दहकती आग, अब याद नहीं

    मुझे तुम्हारी आँखों की नहरें बुझा सकती हैं

    मेरी बात ध्यान से सुनो—

    तुम्हारी आँखों में मुझे मनुष्यता दिखी है

    अपने सारे हथियार मेरे क़दमों में डाल दो

    मैं विह्वल प्रेमी हूँ

    जिसके बारे में तुम कुछ नहीं कर सकते

    प्रिय! प्रेम की अधीनता स्वीकार करो

    जिसमें तुम्हारी वास्तविक स्वतंत्रता निहित है

    राजा की दैवीय शक्तियों को नकार कर

    सदियों पहले हुए सामाजिक समझौते से

    किसका भला हुआ?

    राज्य की उत्पत्ति से किसका कल हुआ?

    तुम जो मुझे दे सकते हो

    वह सब कुछ तुम्हें किसने दिया?

    मुझे घायल किसने किया?

    तंत्रलोक वाद समाज में मेरी हैसियत क्या?

    तुममें मुझमें हमसरी है क्या?

    मेरी बात ध्यान से सुनो—

    यह प्रणय का विलुप्त होता सिद्धांत है

    आओ मेरे हाथ पर बै’अत करो

    ठीक वैसे ही जैसे मैंने तुम्हारे हाथ पर की है

    तुम्हारी आँखों में मुझे मनुष्यता दिखी है

    प्रेम की अधीनता स्वीकार करो

    जिसमें तुम्हारी वास्तविक स्वतंत्रता निहित है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यशस्वी पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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