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लुभावने व्यक्तित्व

lubhawne wyaktitw

अर्पण कुमार

अर्पण कुमार

लुभावने व्यक्तित्व

अर्पण कुमार

और अधिकअर्पण कुमार

    ज़रा-सी देर भर है

    स्पॉटलाइट में आने की उन्हें

    और बस

    चंद कारगुज़ारियाँ लिखते ही

    छू लेते हैं वे शिखर

    अपनी अमुखर चालाकियों,

    अपनी पॉलिश्ड भाषा से

    कहवैयों की शातिर और मतलबी मंडली

    पानी के प्रवाह को अवरुद्ध कर

    उसमें काई की मोटी तह बनाए होती है

    वह मंडली

    ऐसे चमकते-दमकते चेहरों को

    जल्द शामिल कर लेती है

    अपने गिरोह में

    वे तेज़ी से

    दौड़ते-चलते चले जाते हैं

    स्वयं को सफल नहीं

    महान् मानने लगते हैं

    जहाँ देखिए

    लोग बाँच रहे होते हैं

    उनके प्रशस्ति-पत्र

    सुदर्शन वे जिम जाते हैं

    घटाते हैं अपना वज़न

    बढ़ाते हैं अपना क़द

    उनकी पास की नज़र कमज़ोर

    और दूर की नज़र मज़बूत

    होने लगती है

    वे लेखक या कलाकार

    कैसे भी हों

    निशानेबाज़ पक्के ज़रूर होते हैं

    ऐसे लोगों के साथ चलने में

    बना रहता है ख़तरा हरदम

    वे अभ्यस्त होते हैं

    हर उबकाई की

    औरों के लिए मगर

    फिसलन बनी रहती है काई की।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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