अजीब शक्लों में
लोग घूम रहे हैं
एक-दूसरे को नहीं पहचानते हैं
एक-दूसरे की भाषा
नहीं पढ़ सकते हैं
और जी लेते हैं
पूरा वर्तमान, भविष्य और भूत
उन्हें समझे कोई इसलिए
वे चित्रकारी करते हैं
गीत गाते हैं,
नाचते हैं या
फिर पूरे शहर में घूम लेते हैं
उनको जानो, उनसे बातें करो
मगर भाषा कहती है
वे अजनबी हैं
एक-दूसरे को नहीं पहचानते हैं
उन्होंने शिलालेखों को
नज़र भर देखा
और
इतिहास की बातें करने लगे थे
अपनी-अपनी भाषाओं में
उनको कोई नहीं समझ रहा था
वे दीवारों से बातें करते
आकाश को देखकर
गीत गुनगुनाते
और
जब भी उन्हें प्यास लगती
धरती को ताकने लगते
भाषा अब भी पकड़ में नहीं आई थी इनकी
सिवाय इसके कि
उनका रोना, हँसना, गाना और प्यास लगना
लगभग एक-सा था!
वे अब भी विशेष लिपि की खोज में हैं
और
कविताएँ पढ़ना चाह रहे हैं!
- रचनाकार : प्रेमा झा
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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