मैं हज़ार बातें कहने वाला इंसान
ज़रूरत आने पर दो बातें न कह पाया
आप चाहें तो मुझे फुद्दू कह सकते हैं
लेकिन मुझे फिर भी लगता है कि आपको यह जानना चाहिए
कि जिस समय मेरे घर में आग लगी हुई थी
मुझे कोई बात नहीं सूझ रही थी
मैंने कितनी ही कविताएँ पढ़ी थीं जो बताती थीं कि आग कैसे लगती है
कविताएँ जो कहती थीं कि आग को लगने से पहले बुझा देना ज़रूरी है
कविताएँ जो आदमियों ने, औरतों ने
और जो इन बेहूदा खाँचों में नहीं आते उन सारे लोगों ने लिखीं
ज़ाहिर है आदमियों की कविताएँ ज़्यादा छपीं
पर अभी बात दूसरी है
मेरा मसला ये है कि इतने सारे लोगों के कहने के बाद भी
इतने सारे लोगों की मशक़्क़तों के बाद भी
इतने सारे लोगों की मुहब्बतों के बाद भी
कुछ लोगों ने मेरे घर में आग लगा दी है
मुझे इस आग को बुझाने की तरकीब नहीं आती
इसलिए यह तय है कि मेरा घर ख़ाक हो जाएगा
मैं इसमें जल मरूँगा और साथ ही
जल मरेगी इस घर को आग से बचाने की मेरी सारी ख़्वाहिशें
इसीलिए इस कविता का भी कोई मतलब नहीं है
क्योंकि जिन्हें आग लगानी है वे ये कविता कभी नहीं सुनेंगे
लेकिन ख़ैर; तुम मेरे पड़ोसियो, मेरे दोस्तो, मेरे आशिको, मेरे दुश्मनो,
इस घर के साथ ख़ाक होते-होते मैं तुमसे एक आख़िरी गुज़ारिश करना चाहता हूँ
अपना घर बचा सको तो बचा लो
तुम्हारे घरों में आग लगाने साक्षात् भगवान राम निकले हैं
- रचनाकार : धर्मेश
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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