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लेटे-लेटे चलते हुए को सपना समझ

lete lete chalte hue ko sapna samajh

प्रकृति करगेती

प्रकृति करगेती

लेटे-लेटे चलते हुए को सपना समझ

प्रकृति करगेती

और अधिकप्रकृति करगेती

    लेटे-लेटे चलते हुए को सपना समझ

    एक स्वाभाविक डर से दूर जाने

    थोड़ी-सी हिम्मत लिए, मैं आगे बढ़ी

    कंकड़ों की ज़मीन थी

    ज़मीन से लगी चमड़ी पर उनके निशान थे

    लोग जानवरों की जीभ का सालन बना रहे थे

    और अपनी से कह रहे थे : बड़ी स्वादिष्ट होती है

    पेट में पित्त लिए मुझे रेंगते हुए देखा तो

    बिन पूछे उन्होंने बताया कि

    बहुत दूर होना ही

    सहानुभूतियों के बाज़ार का रास्ता है

    अतीत के उसी रास्ते तीन देश सौदा करते थे

    तीन या कई, क्या फ़रक़ पड़ता है?!

    अब सब कुछ झूठ है

    लिखा हुआ, इतिहास में घटा हुआ, सब कुछ झूठ

    झूठ ऐसा जैसे

    पेट भरे होने पर खाई जाती है

    शाकाहारी बनने की क़समें

    शब्दकोश में ‘पेट भर’ का नया मतलब जुड़ा है—

    इंसान की गुद्दी का दाम लगा आना

    ये सब एक गोजर बनकर ही समझ आता है

    ये सब कुछ गड्ढों में गिरकर ही समझ आता है

    और तुम्हारे चप्पलों से पिचककर, चिपककर समझ आता है

    तुम दूसरा क़दम बढ़ा मुक्त हो सकते हो

    या रुककर, झुककर

    दो मिनट का मौन रख, ख़ुद से सुकून भरे ये दो शब्द कह सकते हो कि

    गोजर की मौत की सज़ा होती भी कितनी लंबी?

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रकृति करगेती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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